बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम (Bihar Assembly Election result) मंगलवार शाम को आया जिसमें भारता जनता पार्टी (BJP) द्वारा गठित NDA ने जीत हासिल की। इस बाद जदयू की सीट ने हैरान कर दिया। जदयू इस बार तीसरी पायदान पर रही। इस बार चुनाव में भाजपा का पड़ला भारी रहा। यानि की बिहार में भाजपा की सरकार कहना गलत नहीं होगा। हालांकि, इस बार भी बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ही शपथ लेंगे। इस बीच, शिवसेना (Shivsena) ने नीतीश कुमार को ताना मारा है और एनडीए पर तंज कसा। शिवसेना ने अपने सप्ताहिक पत्र ‘सामना’ में तंज कसा।
शिवसेना ने सामना में लिखा, ‘चुनाव में जिसकी हार हुई है वो बिहार ‘सरकार’ यानी नीतीश बाबू की हुई है क्योंकि भाजपा ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार भी चलाई थी और चुनाव भी लड़ा था। वर्ष 2015 के चुनाव में राजद (राष्ट्रीय जनता दल) नीत महागठबंधन का हिस्सा रहे नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे, उस समय भी उन्हें गुमान था कि वे ही बिहार के ‘सरकार’ हैं। उनके बिना कोई बिहार में सरकार नहीं चला सकता।’
शिवसेना ने आगे लिखा, इसी गुमान में वे पाला बदलकर भाजपा के साथ हो लिए और बिहार के मुख्यमंत्री बने रहे लेकिन उनका यह गुमान इस चुनाव में नहीं टिक पाया। पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार वे फिसलकर तीसरे पायदान पर पहुंच गए हैं। चुनाव के पहले ही लग रहा था कि नीतीश का कद कम करना ही भाजपा का असल गेम प्लान था। भाजपा भले ही जदयू के नेतृत्व में 2005 से ही सरकार बनाती रही हो, लेकिन इस बार नीतीश का कद छोटा करके वो अपने दीर्घकालीन इरादों में जीत गई है। अपनी इसी इच्छापूर्ति के लिए उसने चिराग का दीया जलाया था, जो ‘जलता’ नीतीश से रहा और ‘रोशनी’ भाजपा को देता रहा।
शिवसेना ने अपने सामना में लिखा, भाजपा ने अपनी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए इस बार चिराग पासवान को नीतीश के खिलाफ बगावत के लिए उतारा था। चिराग ने इस चुनाव में अपनी पार्टी से सबसे ज्यादा उम्मीदवार जदयू के उम्मीदवारों के खिलाफ उतारे जबकि भाजपा का पूरा साथ दिया। चिराग की लोजपा ने जदयू के वोट कटवा की भूमिका निभाई और भाजपा के इरादों को इस चुनाव में जीत दिलाई। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुशासन बाबू के नाम पर चर्चित रहे हैं, लेकिन कल आए बिहार चुनाव के परिणाम से इस सुशासन का सिंहासन पूरी तरह हिल गया।
शिवसेना ने नीतीश के इमोशनल खेल पर कहा, ‘चुनाव प्रचार के दौरान ही जनता के क्रोध का सामना करने वाले नीतीश कुमार को अपनी हार दिख गई थी। प्रचार के दौरान जनता से मिले नकारात्मक प्रतिसाद और विरोधियों के हमलों के सामने खुद को पस्त होता देख आखिर में नीतीश बाबू ने इमोशनल कार्ड खेल डाला। उन्होंने इस चुनाव को अपना आखिरी चुनाव तक बता डाला। हालांकि नीतीश का यह इमोशनल कार्ड भी मतदाताओं पर नहीं चल पाया लेकिन उनके द्वारा आखिरी चुनाव लड़ने की बात शायद सच साबित होती नजर आ रही है।’