दलाई लामा (the dalai lama)ने कहा है कि भारत(India) वह भूमि है, जहां आज भी बौद्ध धर्म(Buddhism) को फलने-फूलने का पूरा मौका मिल रहा है। वहीं चीन में धार्मिक स्वतंत्रता का अभाव है। उन्होंने कहा कि तिब्बत में बौद्ध धर्म का बहुत नुकसान हुआ है। वहीं भारत में आज भी बौद्ध परंपरा और संस्कृति सुरक्षित है। 90 साल के हो चुके तिब्बती धर्मगुरु ने तिब्बत से निर्वासन के बाद उन्हें शरण देने के लिए भारत का आभार जताया । उन्होंने कहा कि भारत ने बहुत सारे तिब्बतियों को शरण दी है। भारत के सहयोग से ही बौद्ध दर्शन जीवित है।
दलाई लामा ने कहा कि चीन में धर्म पर भी राजनीति का नियंत्रण है। ऐसे में वहां अध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि एक तरफ चीन में राजनीति धर्म का गला घोंट रही है। वहीं भारत में बौद्ध धर्म को गहराई से समझने का मौका मिलता है। उन्होंने कहा कि चीन की राजनीतिक स्थिति स्थिर ही नहीं है। जिस देश में स्वतंत्रता ही ना हो वहां बौद्ध धर्म की शिक्षा कैसे दी जा सकती है? दलाई लामा का यह बयान तब आया है जब चीन जबरन दलाई लामा का उत्तराधिकारी बनाने के प्रयास में लगा हुआ है।
दलाई लामा का संदेश
अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महासंघ (आईबीसी) द्वारा आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में भी दलाई लामा का एक लिखित संदेश समदोंग रिंपोछे द्वारा पढ़कर सुनाया गया। दलाई लामा ने कहा, “एक साधारण बौद्ध भिक्षु होने के नाते, मैं आम तौर पर जन्मदिन समारोहों पर अधिक ध्यान नहीं देता। हालांकि, चूंकि आप इस अवसर का उपयोग करके दुनिया में करुणा, सौहार्द और परोपकार के महत्व को उजागर करने के लिए कर रहे हैं, इसलिए मैं अपनी सराहना व्यक्त करना चाहता हूं।”
उन्होंने अपने संदेश में कहा कि अब 66 से अधिक वर्ष हो चुके हैं, जब वे स्वयं और बड़ी संख्या में तिब्बती लोग “चीनी कम्युनिस्ट द्वारा तिब्बत पर आक्रमण” के बाद भारत आने में सफल हुए थे। तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा कि तब से उन्हें प्राचीन भारतीय ज्ञान का अध्ययन जारी रखने की “स्वतंत्रता और अवसर” मिला है। दलाई लामा ने कहा, “मैं इस देश के साथ एक विशेष निकटता महसूस करता हूं।”
दलाई लामा ने कहा कि यदि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा- जिसमें बुद्ध की शिक्षाएं भी शामिल हैं- को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ा जाए, तो यह दुनिया में “बड़े पैमाने पर शांति और सुख” में सहायक हो सकती है। उन्होंने कहा, “मैं प्रार्थना करता हूं कि दुनिया में अधिक शांति और समझ बढ़े। युद्ध के कारण इतनी बड़ी संख्या में लोगों को कष्ट में देखकर मुझे बहुत दुःख होता है।”