महाराष्ट्र (Maharashtra) में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) को लेकर एनडीए (NDA) ने भी तैयारी शुरू कर दी है। सीट शेयरिंग (Seat Sharing) पर लगभग बात पूरी हो चुकी है। नेतृत्व को लेकर भी लगभग फैसले लिए जा चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक भाजपा (BJP) के नेतृत्व वाला एनडीए सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में जाएगा, हालांकि शिवसेना का दबाव है कि एनडीए मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को आगे रखकर चुनाव लड़े, ताकि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना उसके वोट में ज्यादा सेंध न लगा सके।
राज्य में अभी चुनाव की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन भाजपा ने उम्मीदवारों के चयन का काम शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र में एनडीए के भीतर सीट बंटवारे को लेकर मोटे तौर पर सहमति बन गई है। विधानसभा की 288 सीटों में से लगभग 170 सीटों पर भाजपा चुनाव मैदान में उतरेगी, जबकि शिवसेना (शिंदे गुट) लगभग 80 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है, वहीं अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को लगभग 40 सीट मिलने की संभावना है।
हालांकि, विधानसभा चुनाव में भावी मुख्यमंत्री को लेकर भाजपा की बड़ी सहयोगी शिवसेना चाहती है कि एनडीए को चुनाव मैदान में मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का चेहरा आगे रखकर जाना चाहिए। इसके पीछे उसका तर्क है कि शिवसेना उद्धव ठाकरे को इससे नुकसान होगा और एनडीए को लाभ मिलेगा। हालांकि, इस मुद्दे पर भाजपा का स्पष्ट मानना है कि वह न केवल सबसे ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ रही है, बल्कि वह गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी भी है। इसलिए भावी सरकार का नेतृत्व उसके पास ही रहेगा।
ऐसे में सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में जाना ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि विपक्षी कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार) और कांग्रेस का गठबंधन भी बिना चेहरे के चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। ऐसे में भाजपा विरोधी खेमे को कोई मौका नहीं देना चाहती है।
शुरू हुआ उम्मीदवार चयन का काम
सूत्रों के अनुसार, भाजपा ने राज्य में उम्मीदवारों के चयन का काम भी शुरू कर दिया है। पार्टी के प्रमुख नेताओं से कहा गया है कि वह हर विधानसभा क्षेत्र से संभावित उम्मीदवारों के नाम की सूची तैयार करें, ताकि चुनाव की घोषणा के तत्काल बाद उम्मीदवारों के नाम को अंतिम रूप दिया जा सके। पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया है कि वह दशहरे के बाद से चुनाव तक अपने क्षेत्र में ही रहें। हर बूथ पर 10 लोगों की टोली बनाकर कम से कम 10 फीसदी ज्यादा वोट बढ़ाने के लिए काम करें। इसके लिए पन्ना प्रमुखों को जिम्मेदारी दी जाएगी कि वह अपने मतदाताओं से संपर्क कर उनको भाजपा गठबंधन के पक्ष में मतदान करने के लिए कहें। साथ ही विरोधी गठबंधन का पर्दाफाश भी करें।
बीजेपी को भी लग सकता है झटका, शरद पवार की एनसीपी का दामन थाम सकते हैं हर्षवर्धन पाटिल
बीजेपी नेता हर्षवर्धन पाटिल शरद पवार की पार्टी एनसीपी (शरद पवार गुट) में शामिल हो सकते हैं। गुरुवार को मुंबई में पवार के आवास पर उनसे मुलाकात के बाद पाटिल ने यह फैसला ले लिया है। मुलाकात के बाद उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल से भाजपा का नाम हटा दिया। उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा कि वह शुक्रवार को इसकी घोषणा करेंगे, लेकिन उन्होंने विस्तृत जानकारी नहीं दी।
पुणे जिले के वरिष्ठ नेता पाटिल अजित पवार के कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं। पाटिल पुणे के इंदापुर विधानसभा क्षेत्र से आगामी विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। उन्होंने 2014 में एनसीपी के दत्तात्रेय भरणे से हारने तक चार बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। गुरुवार को उन्होंने पवार से मुलाकात की, जहां माना जा रहा है कि अंतिम फैसला ले लिया गया है। वह पुणे के इंदापुर विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के उम्मीदवार होंगे। यह बारामती लोकसभा सीट के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है।
पाटिल 1995-1999 में सत्ता में रही शिवसेना-बीजेपी सरकार में मंत्री थे। बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। वे लगातार कांग्रेस सरकारों में मंत्री भी रहे। 2014 में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था, लेकिन 2019 में वे बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े। 2019 में उन्होंने लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले की उम्मीदवारी का समर्थन किया और विधानसभा चुनाव के दौरान इंदापुर सीट के लिए पवार का समर्थन मिलने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन जब एनसीपी ने फिर से भरणे को मैदान में उतारा, तो पाटिल बीजेपी में शामिल हो गए।
बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में एनसीपी के उम्मीदवार दत्तात्रेय भरणे ने पाटिल को करीबी मुकाबले में हराया था। भरणे ने पिछले जुलाई में एनसीपी में हुए विभाजन के दौरान अपनी निष्ठा अजित पवार के पक्ष में कर ली थी। पार्टी महायुति सरकार में भी शामिल हो गई थी। पाटिल को एहसास हो गया था कि एनसीपी के पास सीट होने के कारण उन्हें बीजेपी से उम्मीदवारी नहीं मिल पाएगी। उन्होंने राज्य बीजेपी नेतृत्व को मनाने की कोशिश की लेकिन उन्हें सकारात्मक जवाब नहीं मिला जिसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ने का फैसला किया।