कैंसर के ठोस इलाज के लिए दुनिया भर में रिसर्च किए जा रहे हैं. ये एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज बेहद महंगा होता है. लेकिन इसके बावजूद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि मरीज़ ठीक होंगे भी या नहीं. पिछले दिनों अमेरिका के शिकागो में एक इंटरनेशनल कैंसर मीटिंग हुई थी. इस दौरान न्यूयॉर्क के स्लोआन कैटेरिंग कैंसर सेंटर के डॉक्टरों ने बताया कि इम्यूनोथेरेपी ड्रग के जरिए कोलोरेक्टल कैंसर पूरी तरह खत्म हो सकते हैं. ये मुख्यतौर पर आंतों का कैंसर है. इसके लिए वहां मरीजों पर ट्रायल किया गया.
न्यूयॉर्क के डॉक्टरों ने जिस ट्रायल को बेहद कामयाब बताया है उसमें खर्चा काफी ज्यादा आता है. लेकिन अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इन्हीं इम्यूनोथेरेपी ड्रग्स के जरिए मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने भी ट्रायल किया है. डॉक्टरों के मुताबिक इस नई थेरेपी से बेहद गंभीर मरीजों के सिर और गले के कैंसर पर काफी असर पड़ा. खास बात ये है कि इसमें खर्चा भी काफी कम आता है. मुंबई के डॉक्टरों ने इस नई तकनीक पर कैसे काम किया इस बारे में और ज्यादा जानने से पहले ये समझ लेते हैं कि आखिर इम्यूनोथेरेपी क्या है?
इम्यूनोथेरेपी एक जैविक चिकित्सा है, जिसका इस्तेमाल एक खास तरह के कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है. शरीर की ताकत को कैंसर रैडिकल्स से लड़ने के लिए बढ़ाया जाता है. इस दौरान कैंसर के सेल्स को बढ़ने से रोका जाता है. लेकिन ये बेहद महंगा इलाज है. इस दौरान हर महीने 2 से 3 लाख रुपये का खर्चा आता है. लिहाजा इम्यूनोथेरेपी के जरिए करीब 97 फीसदी मरीज इलाज नहीं करा पाते हैं.
टाटा मेमोरियल अस्पताल में ऑनकॉलोजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉक्टर कुमार प्रभाश ने बताया कि उनका मुख्य मकसद है इस थेरेपी को गरीब से गरीब लोगों तक पहुंचाना है. ट्रायल के दौरान ‘नीवोलंब’ नाम की दवाई 76 मरीजों को दी गई. ये वो मरीज थे जिन्हें सिर और गले के गंभीर कैंसर थे. इस दौरान हर मरीजों पर करीब 25 हज़ार रुपये का खर्चा आया. यानी रेगुलर डोज़ के मुकाबले इस पर 8 गुना कम खर्चा लगा. इन मरीजों पर केमोथेरेपी भी चलती रही. ट्रायल के दौरान 75 और मरीजों पर नजर रखी गई जिन्हें सिर्फ केमोथेरेपी दी गई.
डॉक्टरों के मुताबिक ट्रायल के नतीजे बेहद शानदार रहे. जिन 76 मरीजों का इलाज इम्यूनोथेरेपी और केमोथेरेपी के जरिए किया गया वो 10.1 महीने ज्यादा दिनों तक जिंदा रहे. जबकि जिनका सिर्फ केमोथेरेपी किया गया वो महज 6-7 महीनों तक जिंदा रहे. डॉक्टरों के मुताबिक आने वाले दिनों में इस पर और भी रिसर्च किए जाएंगे.