चुनाव खत्म होने के बाद एग्जिट पोल (Exit poll) एक ऐसा जरिया होता है, जिसके तहत ये अनुमान लग जाता है कि, आने वाला परिणाम कैसा होगा. ऐसा ही कुछ साल 2015 में भी बिहार विधानसभा चुनाव में देखने को मिला था. जब एग्जिट पोल जनता के मूड के बारे में पता लगाने में नाकामयाब साबित रही थी. ये वो साल था जब बीजेपी के साथ जदयू नहीं थी, और भाजपा कुछ अन्य पार्टियों के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी. इस दौरान नीतीश ने तो खुद राजद का दामन थाम लिया था. चुनाव नतीजे के आने से पहले ये अनुमान लगाया गया था कि चुनाव में कांटे की टक्कर थी. लेकिन जो हुआ वो उम्मीद से बिल्कुल परे था. जदयू-राजद और कांग्रेस की महागठबंधन पार्टी ने बीजेपी को बड़े अंतर से हार का मुंह दिखाया था.
15 साल तक नीतीश के साथ रही जनता
अच्छे शासन और जंगलराज को पूरी तरह से खत्म करने का वादा करके जेडीयू नेता नीतीश कुमार साल 2005 में सत्ता में काबिज हुए थे. इसके बाद भी जब चुनाव हुआ तो लोगों ने उन्हें अपना नेता चुना. लेकिन इस बीच नीतीश और बीजेपी के बीच तनाव की खबरें सुर्खियां बनने लगीं. तो जदयू ने लालू यादव की पार्टी राजद के साथ महागठबंधन का दामन थाम लिया.
साल 2015 में बिहार चुनाव का परिणाम
साल 2015 के चुनाव नतीजों की बात करें तो 5 चरणों में हुए मतदान के बाद बाद 8 नवंबर को रिजल्ट की घोषणा की गई. जिसमें राजद के हाथ कुल 80 सीटें लगी थीं. उस समय ये 18.8 फीसदी वोट शेयरिंग था. यानी कि लालू की बहार बिहार में फिर से लौट आई थी. उस दौरान नीतीश की पार्टी जदयू ने भी जबरदस्त टक्कर दी थी. कुल 71 सीटों पर जेडीयू ने जीत हासिल की थी. इस चुनाव में कांग्रेस ने भी बाकी चुनावों से अच्छा प्रदर्शन किया और 27 सीटें खाते में आ गिरी थीं.
नतीजे घोषित होने से पहले ही तैयार हो गए थे लड्डू
इसी साल बीजेपी को भी बिहार में 53 वोट मिले थे, जो पोल अनुमान से बिल्कुल हटकर थे. पोल्स के अनुसार ये कयास लगाए गए थे कि एनडीए बहुमत के आसपास पहुंचेगी. यही नहीं ऑफिस में मुंह मीठा कराने के लिए पार्टी ने लड्डू की भी तैयारी कर ली थी. और तो और काउंटिंग से पहले पटाखों की भी गूंज सुनाई देने लगी थी. लेकिन जब नतीजे घोषित हुए तो एग्जिट पोल्स के सारे अनुमार धरे के धरे रह गए. जी हां पोल्स में जितनी सीटें एनडीए को मिलने के कयास लगे तो वो सारी सीटें तो नीतीश के नेतृत्व वाली महागठबंधन पार्टी ही बटोर ले गई थी.