पिछले 26 करोड़ सालों में धरती से डायनासोर खत्म हो गए. पैंजिया (Pangea) टूटकर अलग-अलग महाद्वीपों में बदल गया. द्वीप बन गए. लेकिन इंसानों ने धरती को बहुत तेजी से बदला है. जिस बदली हुई धरती पर हम रह रहे हैं, उतना ये करोड़ों सालों में नहीं बदली. प्राचीन भूगर्भीय घटनाओं के अध्ययन से पता चला है कि धरती समय-समय पर खुद को स्वस्थ रखने के लिए 2.75 करोड़ साल में एक बाद बदलाव लाती है. यानी उसका भूगर्भीय ‘दिल धड़कता’ है. जब यह धड़कता है तो ज्वालामुखी फटते हैं, सुनामी आती है, समुद्री जलस्तर बढ़ता है. भूकंपीय टेक्टोनिक प्लेट्स शिफ्ट होती हैं. यानी प्रलय आता है. अगला प्रलय कब आएगा?
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के भूगर्भशास्त्री माइकल रैंपिनो और उनकी टीम की स्टडी के मुताबिक अगली बार धरती का दिल करीब 2 करोड़ साल के बाद धड़केगा. यानी 2 करोड़ साल के बाद धरती पर फिर प्रलय आएगा. खैर फिलहाल तो इंसान और अन्य जीव सुरक्षित हैं. माइकल कहते हैं कि छोटी-मोटी प्राकृतिक घटनाएं आपदाएं नहीं हैं. बड़ी आपदा तो तब आएगी जब धरती का दिल धड़केगा. उसकी भूगर्भीय नसों में पल्स दौड़ेगी. माइकल रैंपिनो ने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि ये एक सामान्य भूगर्भीय प्रक्रिया है. ये अचानक नहीं होती. कई भूगर्भीय हलचलों का एक क्रम बना होता है. जो आपस में संबंधित होती हैं. जब सारा क्रम एक साथ जुड़ता है तब धरती का दिल धड़कता है. ये ठीक वैसा ही है जैसे किसी इंसान की सांस अटक जाए. वह हाथ-पैर मार रहा हो. पसीने छूट रहे हों. उसके अंग कांपने लगे. अंत में जैसे ही एक बार सांस आती है, तब सबकुछ सामान्य हो जाता है. ठीक इसी तरह धरती की धड़कन अटकी हुई है. जैसे ही एक बार पूरी होगी. सब कुछ सही हो जाएगा लेकिन भारी तबाही के बाद.
माइकल और उनकी टीम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि करोड़ों सालों की स्टडी में ये पता चला कि है जब भी धरती सांस लेती है तब समुद्री और गैर-समुद्री जीवों का सामूहिक संहार होता है. सुनामी जैसी भयानक गतिविधियां होती है. महाद्वीप टूटकर बिखर जाते हैं. कुछ समुद्र में चले जाते हैं, तो कुछ समुद्र के अंदर से बाहर निकल आते हैं. पृथ्वी के चुंबकीय शक्ति में परिवर्तन होता है. टेक्टोनिक प्लेट आपस में टकराकर या अलग होकर संतुलन बनाने का प्रयास करते हैं. यह स्टडी जियोसाइंस फ्रंटियर्स में प्रकाशित हुई है.
माइकल कहते हैं कि हमारी स्टडी के मुताबिक हर 2.75 करोड़ साल में ऐसी गतिविधियां होती है. अगली गतिविधि करीब 2 करोड़ साल के बाद होगी. भूगर्भशास्त्री और वैज्ञानिक ऐसी गतिविधियों का अध्ययन कई सदियों से कर रहे हैं. इससे पहले 1920 और 1930 के बीच वैज्ञानिकों ने धरती की धड़कन आने का समय अंतराल 3 करोड़ साल बताया था. 1980-90 में यह 2.62 करोड़ से लेकर 3.06 करोड़ साल के बीच बताया गया था. लेकिन अब नई स्टडी ज्यादा सटीक बताई जा रही है. पिछले साल की गई स्टडी के अनुसार प्रलय आने का अंतराल 2.75 करोड़ साल है. यानी लगभग इतने सालों के गैप के बाद धरती खुद-ब-खुद अपने आप को स्वस्थ करने के लिए परिवर्तन करती है. इस स्टडी का रिव्यू करने वाले जियोलॉजिस्ट और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड के प्रोफेसर एलेन कॉलिंस कहते हैं कि यह स्टडी अच्छी है. लेकिन मुझे लगता है कि इसकी सबसे बेहतरीन साल 2018 में मुलर और ड्यूकिविज ने किया था.
साल 2018 की स्टडी में यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के दोनों रिसर्चर ने लिखा था कि उन्होंने धरती के कार्बन साइकिल और टेक्टोनिक प्लेट का अध्ययन किया था. जिसमें उन्होंने प्रलय आने यानी धरती पर बड़े स्तर के भूगर्भीय बदलाव का साइकिल 2.60 करोड़ साल है. कॉलिंस कहते हैं कि माइकल रैंपिनो की स्टडी में कई घटनाओं को कैजुअल तरीके से लिया गया है. इसमें करीब 90 इवेंट ऐसे हैं जो समुद्री सामूहिक संहार का जिक्र करती हैं. लेकिन धरती पर भूगर्भीय धड़कन की साइकिल 2.60 करोड़ से 3.0 करोड़ साल है. लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इसकी वजह क्या है. माइकल की एक अन्य स्टडी में यह बात बताई गई है कि ऐसे प्रलय उल्कापिंडों के टकराने की वजह से होते हैं. वहीं किसी अन्य शोधकर्ता ने इसकी वजह प्लैनेट एक्स को बताया है. लेकिन क्या सच में धरती के अंदर भूगर्भीय ‘धड़कन’ होती है. जी हां. धरती के अंदर टेक्टोनिक प्लेट्स के हिलने और जलवायु परिवर्तन की वजह से धड़कन पैदा होती है. ये एक लंबी भूगर्भीय प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे होती रहती है. लेकिन फिर एक दिन एकसाथ होने पर यह प्रलय जैसी स्थिति बना देती है.