आज शनि जयंती और सूर्य ग्रहण दोनों ही एक साथ हैं। ये एक दुर्लभ संयोग है जो करीब 148 वर्ष के बाद बना है। ये मौजूदा वर्ष का पहला सूर्य ग्रहण है। भारत में यूं भी ग्रहण का धार्मिक महत्व कुछ ज्यादा ही है। भारत की बात करें तो आज यानी 10 जून को पड़ने वाला सूर्य ग्रहण केवल अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में ही दिखाई देगा। ये दोपहर 1.42 बजे शुरू होकर शाम 6.41 बजे खत्म हो जाएगा। दुनिया के दूसरे हिस्सों में इस सूर्य ग्रहण को देखा जा सकेगा। यूरोप और एशिया, ग्रीनलैंड, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी कनाडा और रूस के कुछ हिस्सों में ये दिखाई देगा। ग्रीनलैंड रूस और कनाडा में ये पूरा यानी वलयाकार दिखाई देगा और यहां के निवासी रिंग ऑफ फायर के अदभुत नजारे को देख सकेंगे। वहीं यूरोप और उत्तर एशिया के अधिकतर भाग में केवल आंशिक सूर्य ग्रहण ही दिखाई देगा।
आपको बता दें कि रिंग ऑफ फायर का नजारा उस वक्त दिखाई देता है जब चंद्रमा पूरी तरह से सूरज के आगे आकर उसकी रोशनी को ढक लेता है। इसके बाद जब धीरे-धीरे सूरज उसके पीछे से निकलता है तो उससे निकलने वाली चमक किसी हीरे की अंगूठी की तरह दिखाई देती है। इसको ही रिंग ऑफ फायर कहते हैं। गौरतलब है कि सूर्य ग्रहण उस वक्त होता है जब धरती और सूरज के बीच में चंद्रमा आ जाता है और ये तीनों एक ही सीध में होते हैं।
भारत में सूर्य ग्रहण के धार्मिक महत्व की बात करें तो ये वट सावित्री व्रत, शनि जयंती और ज्येष्ठ अमावस्या के दिन लग रहा है। इसका अर्थ है कि धार्मिक तौर पर इस दिन चार बड़ी चीजें हो रही हैं। हालांकि भारत में ग्रहण को अच्छा नहीं माना जाता है। इसलिए ही इस दिन कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। शनि जयंती पर ग्रहण का योग करीब 148 साल बाद बन रहा है। अब से पहले इस तरह का संयोग 26 मई 1873 को हुआ था। हालांकि इस सूर्य ग्रहण में सूतक नहीं मान्य हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में ये दिखाई नहीं दे रहा है और जहां पर दिखाई दे भी रहा है कि वहां पर आंशिक रूप से ही दिखाई दे रहा है। सूतक वहां पर मान्य होते हैं जहां पर ग्रहण दृष्टिगोचर होता है। ग्रहण के समय में खाना बनाना या खाना शुभ नहीं माना जाता है। इसके अलावा इस दिन नए व मांगलिक कार्य भी नहीं किए जाते हैं। ग्रहण के समय मूर्ति को छूना भी शुभ नहीं माना जाता है और न ही तुलसी के पौधे को हाथ लगाना अच्छा माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार ग्रहण के समय सोने से भी बचने की सलाह दी जाती है।