कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. कुछ ऐसा ही नज़र आता है जयपुर के जमवारामगढ़ तहसील के एक छोटे से गांव खावारानीजी में रहने वाले धीरज कुमार में. धीरज भले ही अभी आठवीं क्लास में पढ़ रहा हो, पर उसकी ‘जुगाड़’ इंजीनीयरिंग इन दिनों हर किसी को हैरत में डाल रही है. उम्र भले ही कम हो लेकिन हौसलों में कोई कमी नहीं है. जयपुर के जमवारामगढ़ तहसील के एक छोटे से गांव खावारानीजी में रहने वाला धीरज अभी महज़ 13 साल का है, पर उसकी असाधारण प्रतिभा देखकर, बड़े-बड़े इंजीनीयर्स तक के छक्के छूट जाते हैं. धीरज भले ही अभी आठवीं कक्षा में पढ़ते हो लेकिन के कारनामे किसी बड़े इंजीनियर को फेल करने वाले हैं छोटी उम्र में ही इंजीनियरिंग के कई नायाब नमूने उन्होंने तैयार कर लिए हैं.
धीरज की इंजीनियरिंग को देखकर उनका पूरा गांव और आसपास के क्षेत्र के लोग कई बार यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि आखिर इतनी कम उम्र में धीरज ने यह सब कुछ कैसे कर लिया. धीरज ने कबाड़ से जुगाड़ कर इंजीनियरिंग के बेहतर नमूने पेश किए हैं. धीरज मानता है की ये मेरे लिए अब बहुत आसान हो गया है. मुझे हमेशा से ये शौक था कि मैं कुछ नया करूं, कुछ हट कर करूं, इसके लिए मैंने घर मे बेकार पड़े सामान पर ही हाथ आजमाना शुरू किया.
धीरज ने जेसीबी, बेकार सीरिंज से ही बना डाली. ये एक मॉडल है कि आखिर जेसीबी काम कैसे करती है. इसको बनाने में धीरज को करीब 15 दिन का समय लगा. पहले उसने बेकार सीरिंज को एक साथ लगाया और उसके बाद गत्ते और बेकार पड़े समान से उसने ये मॉडल तैयार कर दिया. शहरी ज़िन्दगी से दूर एक छोटे से गांव में रहते हुए धीरज ‘जुगाड़’ से ही कूलर, जेसीबी और डिस्को लाईट्स भी डिजाइन कर चुका है. यही नहीं, इस बच्चे का बनाया कूलर तो अब बाज़ार में बिकने भी लगा है.
धीरज के पिता कहते है कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि ये कबाड़ से ये सब चीजें तैयार कर लेगा. वह कहते हैं यह पूरे दिन में स्कूल से आने के बाद पहले पढ़ाई करता है और उसके बाद अपने प्रोजेक्ट पर काम करता है. यह बाहर खेलने नहीं जाता इसका दिमाग बस इसी में लगा रहता है कि नए प्रोजेक्ट को बनाया जाए और पुराना वाला कंप्लीट किया जाए. गांव के लोग भी धीरज के कारनामों से बेहद प्रभावित हैं. वह मानते हैं कि इतनी कम उम्र में ऐसा काम कर देना बेहद मुश्किल है और इसी वजह से गांव के बाकी बच्चों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बना हुआ है. गांव वाले मानते हैं कि आज उनके गांव का नाम धीरज की वजह से ही हो रहा है. मौजूदा वक्त में जब इस उम्र के बच्चे स्मार्टफोन में गेम्स खेलकर वक्त बिता रहे हैं, ऐसे दौर में धीरज जैसे बच्चों का ये टैलेंट वाकई काबिले तारीफ है.