रक्षाबंधन के त्योहार पर भगवान की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। सभी मंदिरों में 24 घंटे भगवान के दर्शन किए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा मंदिर भी है जो सिर्फ साल के एक दिन ही खुलता है और यह दिन है रक्षाबंधन का दिन। यह मंदिर साल के 364 दिन बंद रहता है और रक्षाबंधन के दिन ही इस मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं। इससे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि मंदिर में पूजा भी सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही की जाती है। वंशी नारायण मंदिर उत्तराखंड के चंबोली जिले में स्थित है। इस मंदिर में भगवान की पूजा-अर्चना शाम को सूरज ढलने से पहले तक ही जाती है। इस मंदिर में पूजा लगभग 4 बजे तक ही की जाती है।
मान्याता है कि इस मंदिर में देवऋषि नारद 364 दिन भगवान नारायण की पूजा अर्चना करते हैं और यहां पर मनुष्यों को पूजा करने का अधिकार सिर्फ एक दिन के लिए ही है। यह मंदिर समुद्र तल से 13 हजार फिट की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर को वंशी नारायण मंदिर के नाम से जाना जाता है। काल छठी से लेकर आठवीं छठी के मध्य का माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था।
कातयूरी शैली में बने 10 फिट ऊंचे इस मंदिर का गर्भ भी वर्गाकार है। जहां भगवान विष्णु चर्तुभुज रूप में विद्यमान है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर की प्रतिमा में भगवान नारायण और भगवान शिव दोनों के ही दर्शन होते हैं। वंशी नारायण मंदिर में भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी मौजूद हैं। इस मंदिर तक पहुंचना भी आसान नही है। यहां पहुंचने के लिए बद्रीनाय हाईवे से उन्मद घाटी तक आठ किलोमीटर की दूरी वाहन से तय करनी पड़ती है। इसके 12 किलोमीटर का मुश्किल रास्ता शुरू होता है। यह रास्ता बहुत ही ज्यादा उबड़ खाबड़ है। जिस पर चलना अत्यंत ही कठिन है।
वंशी नारायण मंदिर की कथा
मनुष्यों को इस मंदिर में एक दिन पूजा करने का अधिकार देने के पीछे भी बहुत महत्वपूर्ण कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने। भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने कारण माता लक्ष्मी परेशान हो गई और वह नारद मुनि के पास गई। नारद मुनि के पास पहुंचकर उन्होंने माता लक्ष्मी से पूछा के भगवान विष्णु कहां पर है। जिसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि वह पाताल लोक में हैं और द्वारपाल बने हुए हैं।
नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय भी बताया। उन्होंने कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दें। रक्षासूत्र बांधने के बाद राजा बलि से वापस उन्हें मांग लें। इस पर माता लक्ष्मी ने कहां कि मुझे पाताल लोक जानें का रास्ता नहीं पता क्या आप मेरे साथ पाताल लोक चलेंगे। इस पर उन्होंने माता लक्ष्मी के आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह उनके साथ पाताल लोक चले गए। जिसके बाद नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के जार पुजारी ने वंशी नारायण की पूजा की तब से ही यह परंपरा चली आ रही है।
रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन आता है। इसी मक्खन से वहां पर प्रसाद तैयार होता है। भगवान वंशी नारायण की फूलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल खिलते हैं। इस मंदिर में श्रावन पूर्णिमा पर भगवान नारायण का श्रृंगार भी होता है। इसके बाद गांव के लोग भगवान नारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं। मंदिर में ठाकुर जाति के पुजारी होते हैं। मंदिर के पास ही भालू गुफा भी स्थित है। यहां पर श्रद्धालु भोजन बनाने के साथ रात्रि विश्राम भी करते हैं। गुफा से पास ही प्रकृतिक जलाशय भी है।