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सहारनपुर : परंपराओं, यात्राओं को धर्म समझना गलत : योगगुरु पद्मश्री भारत भूषण

रिर्पोट :- गौरव सिंघल, वरिष्ठ संवाददाता,सहारनपुर मंडल।
सहारनपुर। मोक्षायतन अंतर्राष्ट्रीय योगाश्रम में “पर्व, समागम और धर्म” विषय पर परिचर्चा को संबोधित करते हुए योगगुरु पद्मश्री भारत भूषण ने कहा कि धर्म – रस्मों, रीति-रिवाजों और परंपराओं से बहुत ऊंचा होता है। परंपराओं को धर्म समझना गलत है। इसमें कोई संदेह नहीं कि धर्म को अपने जीवन में जीवंत बनाए रखने के लिए इन परंपराओं के उल्लास की अपनी सुंदरता है। लेकिन धर्म हमें लीक का फकीर नहीं बनाता। धर्म का भीड़ से कोई लेना-देना नहीं। यह हर इंसान का बिल्कुल एकाकी मामला है और ईश्वर के सामने अपने कर्म और धर्म के सही गलत पालन के लिए भी हमे अकेले ही जवाबदेह होना होता है।
योगगुरु पद्मश्री भारत भूषण ने कहा कि हमे कांवड़, ईद, क्रिसमस, धार्मिक समागम व शोभा यात्राओं को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों से ये सब नहीं हुआ और मंदिर-मस्जिद, गिरजे में कोई भीड़ भी जमा नहीं हुई लेकिन हमारा ईश्वर गॉड अल्लाह हम सबसे बिल्कुल भी  नाराज नहीं हुआ। हां यदि हम ये सब जमावड़े करते तो जरूर बड़ा अहित होता। उन्होंने कहा कि मानवता के हित में जरूरी है कि हम कुछ दिन और धैर्य रखें, जमावड़ों से बचें, मास्क और स्वच्छता निर्देशों का ईमानदारी से पालन करते हुए हाथ मिलाने व आलिंगन आदि शारीरिक नजदीकियों से परहेज़ करें और किसी भी संभावित संक्रमण से बचाव और   इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए संक्रमण रोधी योग प्रोटोकॉल का नियमित अभ्यास प्रतिदिन जरूर करें। योग गुरु भारत भूषण ने कहा कि प्रभु ने हमे इस महामारी के माध्यम से ही ये समझाया कि “मोहे कहा तू ढूंढे बंदे, मैं तो तेरे पास में,
न मैं मंदिर न मैं मस्जिद ना काबे कैलाश में!” उन्होंने कहा कि इंसान द्वारा बनाए गए भगवान के मंदिर-मस्जिद, गिरजे आदि घरों और मूर्तियों से से स्वयं  भगवान द्वारा बनाए गए जीवंत घर अधिक मूल्यवान हैं क्योंकि वो घट-घट वासी है और हर इंसान ही नहीं हर ज़र्रे में समाया है, इसलिए भगवान द्वारा बनाए गए इंसान के जीवन की रक्षा हमारा पहला धर्म है ! जन जीवन की रक्षा के लिए धर्म स्थलों में इकट्ठा होना, तीर्थाटन, भीड़ भरे समागम और शोभायात्राओं, खेल टूर्नामेंट आदि को प्रतिबंधित रखने से धर्म की कोई हानि नहीं होती है।