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शादीशुदा महिला के लिव इन रिलेशन पर कोर्ट का बड़ा फैसला, हिन्दू विवाह अधिनियम पर कही ये बात

लिव-इन-रिलेशन में रह रही शादीशुदा महिला को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने महिला को लिव इन में रहने पर संरक्षण देने से किया इनकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज करते हुए पांच हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि क्या हम ऐसे लोगों को संरक्षण देने का आदेश दे सकते हैं, जिन्होंने दंड संहिता व हिंदू विवाह अधिनियम का खुला उल्लंघन किया हो। दंड संहिता व हिंदू विवाह अधिनियम का उल्लंघन करने वालों को संरक्षण नहीं मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 सभी नागारिकों को जीवन की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। यह स्वतंत्रता कानून के दायरे में होनी चाहिए तभी संरक्षण मिल सकता है।

 

ज्ञात हो कि अलीगढ़ की गीता ने याचिका दाखिल कर पति व ससुरालवालों से सुरक्षा की मांग की थी। वह अपनी मर्जी से पति को छोड़ कर दूसरे व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही हैं। गीता का कहना है कि उसका पति और परिवार के लोग उसके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं। अब गीता की याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। ज्ञात हो कि पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे एक कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अगर कपल को संरक्षण दिया गया तो इससे सामाजिक ताने-बाने पर खराब असर पड़ेगा।

 

पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में लिव-इन में रह रहे एक कपल ने संरक्षण देने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी। याचिका दाखिल करने वालों में लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल थी। याचिका में कहा गया था कि उन्हें लड़की के परिवार वालों से खतरा है, इसलिए उन्हें सुरक्षा दी जाये। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह के संरक्षण का दावा करने वालों को इसकी अनुमति दे दी जाएगी तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा। इसलिए संरक्षण देने का कोई आधार नहीं बनता है।