Breaking News

विजयादशमी पर बोले RSS चीफ मोहन भागवत- इस बार भारत के जवाब से सहम गया चीन

आज देश भर में विजयादशमी मनाई जा रही है। विजयादशमी को ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का स्थापना दिवस भी होता है। इस मौके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत सहित संघ के अन्य नेताओं ने आज नागपुर स्थित मुख्यालय के महर्षि व्यास सभागार में वार्षिक दशहरा समारोह में भाग लिया। इस मौके संघ प्रमुख ने कहा, ‘हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अदम्य वीरता, हमारे शासनकर्ताओं का स्वाभिमानी रवैया तथा हम सब भारत के लोगों के दुर्दम्य नीति-धैर्य का परिचय चीन को पहली बार मिला है।’

Mohan-Bhagwat-3

इस दौरान मोहन भागवत ने कहा, 9 नवंबर को श्रीरामजन्मभूमि के मामले में अपना असंदिग्ध फैसला सुनाकर सुप्रीम कोर्ट ने इतिहास बनाया।  विजयादशमी के मौके पर मोहन भागवत ने कहा, भारतीय जनता ने राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संयम और समझदारी का परिचय देते हुए स्वीकार किया। 5 अगस्त को अयोध्या में मंदिर के भूमिपूजन के दिन देशभर का वातावरण सात्विक, परंतु सयंमित, पवित्र और स्नेहपूर्ण रहा।

भागवत ने कहा कि चीन के साम्राज्यवादी स्वभाव के सामने भारत तनकर खड़ा हुआ है, जिससे पड़ोसी देश के हौसले पस्त हुए हैं। कोई भी देश हमारी दोस्ती को कमजोरी न समझे। भागवत ने कहा, पूरी दुनिया ने देखा है कि कैसे चीन भारत के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहा है। चीन के विस्तारवादी नीति से हर कोई परिचित है। चीन ताइवान, वियतनाम, अमेरिका, जापान और भारत से लड़ाई लड़ रहा है। लेकिन भारत के पलटवार ने चीन को बेचैन कर दिया।

संघ प्रमुख ने कहा, विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारा भारत संकट की इस परिस्थिति में अधिक अच्छे प्रकार से खड़ा हुआ दिखाई देता है। भारत में इस महामारी की विनाशकता का प्रभाव बाकी देशों से कम दिखाई दे रहा है, इसके कुछ कारण हैं।

Mohan-Bhagwat-2

भागवत ने कहा, हमने नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन देखे, इससे देश में तनाव पैदा हुआ। इससे पहले कि इस पर आगे चर्चा हो पाती, इस साल कोरोना पर ध्यान आ गया। इसलिए, कुछ लोगों के दिमाग में सांप्रदायिक भड़काना केवल उनके दिमाग में रह गया। कोरोना अन्य मुद्दों पर भी छा गया।

मोहन भागवत ने कहा, ‘हिन्दू’ शब्द की भावना की परिधि में आने व रहने के लिए किसी को अपनी पूजा, प्रान्त, भाषा आदि कोई भी विशेषता छोड़नी नहीं पड़ती। केवल अपना ही वर्चस्व स्थापित करने की इच्छा छोड़नी पड़ती है। स्वयं के मन से अलगाववादी भावना को समाप्त करना पड़ता है। भारत की भावनिक एकता व भारत में सभी विविधताओं का स्वीकार व सम्मान की भावना के मूल में हिन्दू संस्कृति, हिन्दू परम्परा व हिन्दू समाज की स्वीकार प्रवृत्ति व सहिष्णुता है।’