भारत ने आईएनएस विक्रांत को समुद्र में उतार दिया है। इसके साथ ही उसने इंडो-पैसिफिक में अपना दबदबा बना लिया है। पूरब से लेकर पश्चिमी समुद्र तक उसकी धाक मजबूत हो गई है। इसके साथ ही यह पहली बार वह चीन से बढ़ते समुद्री खतरे को जवाब देने की हालत में भी आ चुका है। साथ ही उसने इंडो पैसिफिक में नेविगेशन की आजादी भी हासिल कर ली है। असल में यह भारत के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत के सपने को पूरा करने की तरफ बढ़ाया गया कदम भी है।
जनरल बिपिन रावत का यकीन था कि भारत एक दिन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बड़ी ताकत बनेगा। इस दिशा में पहला कदम भारतीय सेना एक मैरीटाइम थिएटर कमांड कमांड के तहत लाना है। जिसमें एक नेवी एडमिरल है और आर्मी और एयरफोर्स का समर्थन हासिल है। इसके साथ ही समय आ चुका है भारतीय सेना और बेहतर आपसी समन्वय हासिल करे। इस दिशा में एक बड़ा कदम आईएनएस विक्रांत का जलावतरण है। वहीं अब भारतीय सेना को चाहिए कि वह ब्रिटिश राज की परंपराओं और कार्यक्रमों को पीछे छोड़कर खुद की नई पहचान हासिल करे।
भारत के पहले सीडीएस जनरल बिपिन राव को यकीन था कि भारत अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में समुद्री सुरक्षा विकसित करके सही मायनों में इंडो-पैसिफिक पावर बन सकता है। जनरल रावत की सुरक्षा योजना काफी विस्तृत थी। वह चाहते थे कि भारत ग्रेट निकोबार की कैंपबेल खाड़ी में कंटेनर कम रिप्लेनिशमेंट फैसिलिटी का विकास करे। ताकि भारत के मित्र देशों के युद्धपोत और व्यापारी पोत श्रीलंका की तरफ जाने के बजाए यहीं आएं। इसको लेकर यह भी योजना बनी थी कि कैंपबेल खाड़ी में एक डीप हार्बर बनाया जाए ताकि इंडियन एयरक्राफ्ट कैरियर किसी ग्लोबल इमरजेंसी या प्राकृतिक आपदा के समय तेजी से रिस्पांस कर सके।
आईएनएस विक्रांत के जलावतरण के बाद अब मोदी सरकार को दिशा में जरूरी कदम बढ़ाने चाहिए। वैसे भारत ने रक्षा क्षेत्र में निर्माण को लेकर कई चीजों पर आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है। इनमें एयरक्राफ्ट कैरियर्स, डीजल और न्यूक सबमरीन्स और हल्के लड़ाकू विमान हैं। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि भारत इन विमानों के निर्माण में तेजी ले आए। उदाहरण के लिए जब मलेशिया से लेकर अर्जेंटीना तक तेजस को खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं तो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को चाहिए कि वह इसके निर्माण को अगले स्तर तक ले जाए।