गूगल मैप्स ने करोड़ों लोगों की जिंदगी आसान किया है और इस एप के सहारे किसी भी लोकेशन को ढूंढना काफी आसान हो गया है. हालांकि आज भी मिलिट्री बेस से लेकर रहस्यमयी द्वीपों तक कई ऐसी लोकेशन्स हैं जो गूगल मैप्स पर ढूंढने पर भी नहीं मिलती हैं. जानते हैं ऐसी ही लोकेशन्स के बारे में गूगल मैप्स पर कई ऐसी जेल हैं जिन्हें सेंसर किया गया है क्योंकि इन लोकेशन्स को संवेदनशील लोकेशन्स समझा जाता है. सेंट्रल फ्रांस में मौजूद Montluçon जेल भी ऐसी है जो गूगल मैप्स पर सेंसर की गई है. रिपोर्ट्स के अनुसार, रेडोएन फायड नाम के किलर ने इस जेल को भेदने में गूगल मैप्स का इस्तेमाल किया था जिसके बाद साल 2018 में फ्रांस की सरकार ने गूगल से कहा था कि वे इस जेल की सभी तस्वीरें इंटरनेट से हटा लें.
प्रशांत महासागर के पास स्थित मोरुरा आइलैंड का भी काफी हिस्सा गूगल मैप्स पर सेंसर है. द सन की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा इस द्वीप के न्यूक्लियर इतिहास के चलते है. फ्रांस ने साल 1966 से 1996 के बीच इस द्वीप पर 181 न्यूक्लियर टेस्ट को अंजाम दिया था. पूर्वी साइबेरिया समुद्र के पास स्थित जेनेट द्वीप(Jeannette Island) सिर्फ 1.2 मील लंबा है और ये बेहद छोटा द्वीप है. ये द्वीप आमतौर पर बर्फ से सराबोर रहता है. हालांकि ये साफ नहीं है कि गूगल मैप्स पर इस द्वीप को क्यों सेंसर किया गया है. बता दें कि अब तक ये साफ नहीं है कि ये द्वीप रूस का है या अमेरिका का.
उत्तर कोरिया का इस लिस्ट में होना कई लोगों के लिए आश्चर्य की बात नहीं होगी. उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग उन यूं भी पिछले एक दशक में कई चीजों को बैन कर चुके हैं. गूगल मैप्स पर भी उत्तर कोरिया के कुछ हिस्सों को सेंसर्ड दिखाया गया है. अमेरिका के अलास्का में मौजूद Amchitka द्वीप को भी गूगल मैप्स ने सेंसर किया हुआ है. ये जगह 1950, 60 और 70 के दशक में अमेरिका की अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्टिंग के लिए इस्तेमाल होती रही है. अमेरिका ने अपने सबसे महत्वपूर्ण अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट इसी द्वीप पर किए हैं. इस जगह पर फिलहाल निगरानी रखी जाती है कि कहीं यहां से रेडियोएक्टिव लीकेज शुरु ना हो जाए. फ्रांस में मौजूद Areva La Hague न्यूक्लियर फ्यूल फैसिलिटी को भी गूगल मैप्स ने सेंसर किया हुआ है. ये साइट 1976 में खुली थी. हालांकि साल 1997 में ये जगह काफी विवादों में आ गई थी जब ग्रीनपीस नाम की संस्था ने दावा किया था कि इस जगह से हर रोज दस लाख लीटर लिक्विड रेडियोएक्टिव वेस्ट समुद्र में बहाया जाता है जो पर्यावरण के साथ ही समुद्री जीवों के लिए भी खतरनाक है.