झारखंड के जिला देवघर में विजय दशमी के अवसर पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है. कारण है कि देवघर को दशानन रावण की तपोभूमि माना जाता है और यहां स्थापित पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग को रावणेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है. यहां शिव और शक्ति दोनों साथ विराजमान हैं. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई हर प्रार्थना स्वीकार होती है.
इसलिए नहीं होता दहन
देवघर में विजयादशमी के अवसर पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है. मान्यता है कि देवघर में रावण के द्वारा ही पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गयी थी. यही वजह है कि देवघर को रावण की तपोभूमि माना जाता है और यहां स्थापित पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग को रावणेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है.
देवघर तीर्थपुरोहित पंडित दुर्लभ ने बताया कि दशानन रावण की पहचान दो रुपों में की जाती है. एक तो राक्षसपति दशानन रावण के तौर पर और दूसरा वेद-पुराणों के ज्ञाता प्रकांड पंडित और विद्वान रावण के रुप में. देवघर में रावण द्वारा पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना के कारण उनके दूसरे रुप की अधिक मान्यता है. इसी वजह से रावणेश्वर महादेव की भूमि देवघर में दशहरा के अवसर पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है.
यहां भी नहीं होता रावण के पुतले का दहन
बता दें उत्तर प्रदेश के बिसरख गांव में रावण का मंदिर बना हुआ है और यहां पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ लोग रावण की पूजा करते हैं. ऐसा माना जाता है कि बिसरख गांव रावण का ननिहाल था. मध्य प्रदेश के रावनग्राम गांव में भी रावन का दहन नहीं किया जाता है. यहां के लोग रावण को भगवान के रूप में पूजते हैं. राजस्थान के जोधपुर में भी रावण का मंदिर है. यहां के कुछ समाज विशेष के लोग रावण का पूजन करते हैं और खुद को रावण का वंशज मानते हैं. आंध्रप्रदेश के काकिनाड में भी रावण का मंदिर बना हुआ है. यहां आने वाले लोग भगवान राम की शक्तियों को मानने से इनकार नहीं करते, लेकिन वे रावण को ही शक्ति सम्राट मानते हैं.