वोटरों को साधने और विपक्षियों को घेरने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक साथ करते हैं. महिला आरक्षण विधेयक की टाइमिंग ने इसे एक बार फिर साफ कर दिया है. यह विधेयक उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में वोटों की शक्ल में कितना फायदा पहुंचाएगा. यह तो भविष्य तय करेगा, लेकिन फिलहाल विपक्ष खुद को ठगा पा रहा है. कुछ अगर-मगर के बीच इसके समर्थन की उसकी मजबूरी है.
चाहकर भी अपने समर्थन की कीमत पर पिछले 27 साल से टल रहे इस कानून का क्रेडिट मोदी के हक में जाने से रोकने की हालत में वह नहीं है. पिछले साढ़े नौ साल के अपने कार्यकाल में मोदी नामुमकिन से दिखने वाले धारा 370 के खात्मे और तीन तलाक जैसे कानून पास करा चुके हैं. नारी शक्ति वंदन विधेयक के तौर पर एक और कामयाबी उनके हिस्से में जा रही है.
संघ की सीख की बांध रखी गांठ
मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों को लेकर आगे बढ़े हैं. संघ ने शुरुआती दौर में अपनी जड़ों के लिए खाद-पानी परिवारों के बीच पैठ बनाकर हासिल किया था. उसके प्रचारक संघ से जुड़े परिवारों के घर नियमित रूप से भोजन करने पहुंचते थे. सामूहिक कार्यक्रमों के लिए घरों से भोजन के पैकेट एकत्रित किए जाते थे.
ये सीधे रसोई से जुड़ने का रास्ता था. नतीजतन शाखा में पहुंचने वाले पुरुष स्वयंसेवकों का ही नहीं, उनके परिवारों के बीच भी संघ की सोच का विस्तार हुआ. आगे चलकर अपने आनुषंगिक संगठनों के जरिए संघ ने महिलाओं को जोड़ने के उपक्रमों का सिलसिला जारी रखा.
आभामंडल फिर भी कायम
मुख्यमंत्री के तौर पर संघ के रास्ते चल मोदी ने खुद को गुजरात में मजबूत किया. 2014 की कामयाबी के बाद अपनी लोकप्रियता के विस्तार के लिए मोदी ने देश भर की महिलाओं की बेहतरी की कोशिशों पर खासतौर से फोकस किया. चुनावी राजनीति में विकास और जनकल्याण के कामों के साथ वोटरों को जोड़ने की कोशिशें भी चलती रहती हैं.
मोदी ने साबित किया है कि वे इस विधा में माहिर हैं. दूसरे कार्यकाल के अंतिम चरण में भी मोदी का आभामंडल उस मुकाम पर है, जहां उनके मुकाबले के लिए विपक्ष को एकजुट होने की जरूरत महसूस हो रही है. मोदी की इस ताकत में महिलाओं के समर्थन की बड़ी भूमिका है. तमाम जातीय और सोशल इंजीनियरिंग के समीकरणों को झुठलाते हुए मोदी ने अपने पक्ष में एक बड़ा महिला वोट बैंक विकसित किया है. इसे लाभार्थी वोट बैंक का भी नाम दिया जाता है.
गरीबों-महिलाओं के हित की योजनाएं
महिलाओं के एक बड़े हिस्से को मोदी ने खुद के पक्ष में कैसे खड़ा किया? इसका श्रेय उनकी सरकार की उन योजनाओं को जाता है, जो उन्होंने गरीब परिवारों के हक में बनाई और जिसका सीधा लाभ गृहणियों को मिला. 27 करोड़ जनधन खातों के जरिए मोदी समाज के उस कमजोर तबके के बीच पहुंचे, जिसका बड़ा हिस्सा एक समय मध्य वर्ग की प्रतिनिधि समझी जाने वाली भाजपा से काफी दूर था.
उज्जवला योजना ने 9.6 करोड़ परिवारों की रसोई में मोदी की उपस्थिति दर्ज करा दी. कोरोना के दौर से जारी मुफ्त राशन योजना ने निर्धन परिवारों को संदेश दिया है कि मोदी को उनकी फिक्र है. प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत 1.7 करोड़ परिवारों के सिर को छत हासिल हुई. घर -घर शौचालय या फिर हर घर नल की योजना, इनके जरिए सबसे ज्यादा महिलाओं को राहत मिली है.
मोदी लगातार महिला हितों पर बोलते हैं और उनकी सरकार महिलाओं की बेहतरी के लिए एक के बाद एक योजना के जरिए उसे सच में बदलने की कोशिश करती दिखती है. इलाज की आयुष्मान योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, सुरक्षित मातृत्व आश्वासन, सुकन्या समृद्धि योजना, मुफ्त सिलाई वितरण, महिला शक्ति केंद्र, महिला उद्यमियों के लिए मुद्रा ऋण आदि जैसी अनेक योजनाओं की एक शृंखला है, जिसके जरिए मोदी सरकार महिलाओं को उनके हितों के प्रति सक्रिय रहने का संदेश देने में सफल रही है.
आधी आबादी के वोट मोदी के हिस्से में
विपक्ष की नजर में मोदी सिर्फ जुमलेबाजी करते हैं. वे उनकी योजनाओं को अमल से दूर झूठा प्रोपेगंडा मानते हैं. असलियत क्या है? लोकतंत्र में इसका परीक्षण चुनाव नतीजों में दिखता है. साल 2024 का इम्तहान नजदीक है, लेकिन 2019 का रिपोर्ट कार्ड बता रहा है कि उन्होंने वोटरों के बीच भरोसा बरकरार रखा और खासतौर पर महिलाओं के बीच समर्थन को मजबूत किया.
इस चुनाव के बाद हुए अध्ययन में 50 फीसदी महिलाओं के मोदी और बीजेपी को वोट देने के निष्कर्ष सामने आए. कांग्रेस को 23 फीसदी और अन्य के पक्ष में 27 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया. इस चुनाव में महिलाओं का मतदान 67.18 फीसदी तथा पुरुषों का उनसे कम 67.01 फीसद था. 2022 तक महिला वोटरों की तादाद में 5.2 फीसदी और पुरुष वोटर 3.6 फीसदी बढ़े हैं. फिलहाल महिला वोटर 46.1 करोड़ और पुरुष वोटर 49 करोड़ हैं.
पार्टी की निर्भरता ने बढ़ाई मोदी की चुनौती
साल 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी के लिए विभिन्न राज्यों के नतीजे मिश्रित रहे हैं. हाल में कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की वापसी ने 2024 के नजरिए से बीजेपी की चिंताएं बढ़ाई हैं. बेशक बीजेपी के पास एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है, लेकिन 2014 से पार्टी लगातार मोदी पर आश्रित है. केंद्र से स्थानीय निकाय तक के चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़े जाते हैं.
जाहिर है कि इस निर्भरता और पार्टी की बढ़ती अपेक्षाओं ने मोदी के लिए चुनौतियां बढ़ाई हैं. 2019 में अपने प्रभाव क्षेत्र के खासतौर पर हिंदी पट्टी के राज्यों की अधिकतम सीटें बीजेपी के पक्ष में गई हैं. 2024 में उनमें कमी की स्थिति में भरपाई के लिए कम समर्थन वाले राज्यों में आधार विस्तार के लिए पार्टी कोशिश में लगी हुई है. ऐसी कोशिशों के लिए मुद्दों की जरूरत होती है. मोदी उसे जुटाते हैं.
मोदी के समर्थन पर घर के पुरुष दरकिनार
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में तीन तलाक के खात्मे के साथ मोदी ने हलचल मचाई थी. सीधे तौर पर इसका वास्ता मुस्लिम महिलाओं से था, लेकिन इसके संदेश ने अन्य धर्मों की महिलाओं के बीच भी मोदी को महिला हितैषी के रूप में पेश किया. मोदी सिर्फ इसलिए कामयाब नहीं हैं, क्योंकि वे चौंकाने वाले साहसिक फैसले लेते हैं और उनकी टाइमिंग अनुकूल होती है. इस कामयाबी की बड़ी वजह होती है कि वे ऐसे वर्गों के लिए जमीन पर पहले से इतना काम किए रहते हैं कि उनकी अगली घोषणा उस तबके में उनके प्रति भरोसा बरकरार रखने में मददगार होती है.
2019 में उन्हें मिले महिलाओं के बड़े समर्थन में सिर्फ तीन तलाक के खात्मे का योगदान नहीं था, बल्कि 2014 से 2019 के बीच उनकी सरकार ने महिलाओं की बेहतरी के जो जमीनी प्रयास किए और साथ ही उनका भरोसेमंद प्रचार किया, ने बड़ी सहायता की. 2024 में महिला मतदाताओं को संबोधित करते समय उनके पास लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में महिलाओं के 33 फीसदी आरक्षण का उपहार होगा.
विपक्षी यह कहते हुए घेरेंगे कि इसका लाभ वर्षों बाद क्यों, अभी क्यों नहीं ? मोदी फिर भी महिला वोटरों के बीच भरोसा बरकरार रख सकते हैं, क्योंकि उनके पास उनके हित में किए गए कामों को गिनाने के लिए लंबी सूची मौजूद है. विपक्षी भले तंज करते रहें लेकिन मोदी है तो मुमकिन है, का सबसे ज्यादा भरोसा इन्हीं महिला वोटरों के बीच है. ये भरोसा इस हद तक है कि वोट के सवाल पर वे घर के पुरुषों की भी नहीं सुनतीं.