92 साल की उम्र में स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मीं लता मंगेशकर ने बेहद कम उम्र में गायिकी को कॅरिअर के रूप में अपना लिया। लता जी के कॅरिअर की शुरुआत अभिनय से हुई थी पर जैसे मानों किस्मत को कुछ और बेहतरीन करने को तैयार थी। मुंबई आकर उन्हें गायिकी में अवसर मिला। गायिकी के सुपरहिट गानों से करोड़ो लोगों के दिलों में जगह बना लिया। श्रोताओं के लिये वो सिर्फ गायिका नहीं, बल्कि देवी थीं। एक ऐसी आवाज थीं जो हमेशा दुनिया गुनगुनाती रहेगी। आज भी कई लोग ऐसे हैं, जिनके दिन की शुरुआत उनके गाने सुने बिना नहीं होती। अपनी गायिकी के दम पर स्वर कोकिला ने न सिर्फ लोगों के दिलों में पहचान बनाई, बल्कि कई बड़े पुरस्कारों से दुनियाभर में देश का नाम भी रोशन किया।
संगीत की दुनिया की शान लता मंगेशकर को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका था। ये सम्मान उन्हें 1972, 1975 और 1990 में दिया गया था। इसके बाद 1958, 1962, 1965, 1969, 1993 और 1994 में उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। उन्हें 1969 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लता मंगेशकर अपनी गायिकी से लगातार ये साबित करती रहीं कि वो एक नहीं, बल्कि कई पुरस्कारों की हकदार हैं। लता को सुनने के बाद ऐसा लगता था जैसे मां सरस्वती उनके कंठ में खुद विराजमान हैं। शायद यही वजह है कि एक पल वो भी आया जब उन्हें 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कला की दुनिाया का सबसे बड़ा पुरस्कार लता जी को मिला।
1993 में लता की झोली में फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार आया। इसके साथ ही 1999 में उन्हें पद्म विभूषण भी मिला। 2001 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। लता को राजीव गांधी पुरस्कार, एन.टी.आर. पुरस्कार, महाराष्ट्र भूषण, स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट, जी सिने का लाइफटाइम अचीवमेंट जैसे अवॉर्ड्स से भी सम्मानित किया गया था। लता के जाने से कला जगत् के साथ ही हर ओर सन्नटा और मातम पसरा है। स्वरा कोकिला ने लोगों पर अपनी आवाज का जादू ऐसे बिखेरा है कि उन्हें कभी चाहकर भी नहीं भूला सकता है। वो कहीं भी रहें लेकिन उनके सदाबहार गाने हमेशा हमें उनकी याद दिलाते रहेंगे।