भारत (India ) अपने पड़ोसी देशों के साथ हमेशा से सौहार्दपूर्ण रिश्तें चाहता है. अपनी अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखते हुए भारत की कभी भी किसी पड़ोसी मुल्क को दबाने या अपने क्षेत्र विस्तार की महत्वाकांक्षा नहीं रही. जब भी हमारे पड़ोसी मुल्कों को हमारी ज़रुरत पड़ी हमने उदारता दिखाते हुए एक कदम बढ़कर मदद की है लेकिन अगर किसी पड़ोसी मुल्क ने अपनी सीमा लांघी है या हमारे धैर्य की परीक्षा ली है तो हमने सही वक्त पर माकूल जवाब भी दिया है. 1971 की विजय गाथा भारतीय सैनिकों (indian soldiers) के अदम्य साहस और शौर्य की ऐसी कहानी है..जो हमेशा ही आनेवाली पीढियों को प्रेरित करते रहेगी.
जब भारत-पाकिस्तान (Pakistan ) के बीच 1971 का युद्ध हुआ उस वक्त भारतीय सेना के अध्यक्ष फील्ड मार्शल सैम होर्मसजी फ्रैमजी जमशेदजी मानेकशॉ थे. उनके नेतृत्व में ही भारत ने ये युद्ध लड़ा और ऐतिहासिक जीत (epic win) हासिल की. मानेकशॉ के सक्षम सैन्य नेतृत्व से 1971 के युद्ध में मिली जीत से राष्ट्र को आत्मविश्वास की एक नई भावना मिली. उनकी सेवाओं को देखते हुए राष्ट्रपति (President) ने जनवरी 1973 में उन्हें फील्ड मार्शल बनाया.
16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश बना स्वतंत्र राष्ट्र
धर्म के आधार पर भारत से अलग हुए पश्चिमी पाकिस्तान ने तब के पूर्वी पाकिस्तान पर बेतहाशा जुल्म ढ़ाये. नरसंहार, बलात्कार और मानवाधिकारों (rape and human rights) का उल्लंघन करने में पाकिस्तान ने सारी हदें पार कर दी थी. तब भारत बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में न सिर्फ शामिल हुआ बल्कि पाकिस्तान को ऐसी करारी शिकस्त दी कि उसे पूर्वी पाकिस्तान से अपना अधिकार छोड़ना पड़ा. इसके बाद ही 16 दिसंबर 1971 के दिन भारतीय सेनाओं के पराक्रम और मजबूत संकल्प की बदौलत 24 सालों से दमन और अत्याचार सह रहे तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) के करोड़ों लोगों को मुक्ति मिली थी. यही नहीं भारतीय सेना के पराक्रम से दुनिया के मानचित्र पर 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का जन्म हुआ. इसके बाद से 16 दिसंबर को हर साल भारत विजय दिवस मनाता है. विजय दिवस न केवल भारत की पाकिस्तान पर 1971 में शानदार जीत की याद दिलाता है बल्कि यह बांग्लादेश के जन्म की कहानी भी कहता है.
पूर्वी पाकिस्तान में जुल्म की हदें पार हुई
दरअसल 1947 में भारत से अलग होने के बाद पूर्वी पाकिस्तान जिसे वर्तमान में बांग्लादेश कहा जाता है, वो वर्तमान पाकिस्तान के हिस्से में चला गया. पश्चिमी पाकिस्तान (मौजूदा पाकिस्तान) की ओर से लगातार उपेक्षा, सियासी तिरस्कार और शोषण ने पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश के लोगों को आक्रोश और घृणा से भर दिया. पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति संग्राम इसी का नतीजा था. आखिरकार भारत के सहयोग से बांग्लादेश पाकिस्तान से आजाद होकर 1971 में एक नए देश के रूप में दुनिया के सामने आया.
मौजूदा बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था
1947 तक भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश भौगोलिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक तौर पर एक राष्ट्र थे. 1947 में अंग्रेज़ो ने भारत से जाने का फैसला किया. जाने से पहले अंग्रेज़ भारत को दो हिस्सों में बांट कर चले गए. बंटवारे के बाद दो देश बने भारत और पाकिस्तान. पाकिस्तान का जन्म धर्म के आधार पर हुआ. लेकिन धर्म पाकिस्तान को लंबे अरसे तक बांध कर नहीं रख सका. तब मौजूदा पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान था और आज का बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान. आज़ादी के कुछ साल बाद ही पंजाबी प्रभुत्व और पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे के ख़िलाफ पूर्वी हिस्से में असंतोष पनपने लगा.
पूर्वी पाकिस्तान के साथ शुरू से ही भेदभाव
पाकिस्तान के जन्म के साथ से ही पश्चिमी पाकिस्तान की ओर से पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश के साथ भेदभाव शुरू हो गया. 1948 में उर्दू को पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया. बांग्लाभाषी लोगों में इसे लेकर ग़ुस्सा भड़क उठा. ढाका में छात्रों के एक बड़े समूह ने बांग्ला को बराबरी का दर्जा दिये जाने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया. पुलिस ने निहत्थे छात्रों पर गोलियां चलाईं. कई निहत्थे लोग इस गोलीबारी में मारे गए. इसके बाद बांग्ला आंदोलन हिंसक हो गया. इस आंदोलन ने भाषाई पहचान को लेकर अलग देश की मांग के बीज बो दिए. इस आंदोलन ने बंगाली राष्ट्रीय अस्मिता को जन्म दिया और फिर शुरू हुई अलग राष्ट्र बनाने की मांग.
1970 के पाकिस्तान चुनाव के बाद आंदोलन तेज़
जिस घटना ने बांग्लादेश के लोगों को अलग राष्ट्र बनाने पर मजबूर कर दिया, वह था 1970 में हुआ पाकिस्तान का आम चुनाव. इस चुनाव के नतीजों ने पाकिस्तान का विघटन तय कर दिया. दरअसल शेख़ मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग को इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा सीट मिली, लेकिन पश्चिम में ज़ुल्फिक़ार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) को ज़्यादा सीट हासिल हुईं. पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीट मुजीबुर रहमान की पार्टी को मिली. 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में मुजीब के बार सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत था. भुट्टो ने चुनाव परिणाम को ही मानने से ही इंकार कर दिया. इसके ख़िलाफ 7 मार्च 1971 को ढाका में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया. इसके बाद शुरू हुआ बांग्ला मुक्ति संग्राम. सबसे पहले बांग्लादेश मुक्तिवाहिनी का गठन हुआ. पाकिस्तान ने भारत पर पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं को बरग़लाने का आरोप लगाया. पाकिस्तानी फौज ने पूर्व के हिस्से में रहने वाले आम लोगों पर जुल्म ढाने शुरू किए. लाखों की तादाद में लोग भारत की सीमाओं में घुसने लगे. इस बीच पाकिस्तान ने भारत के कई हिस्सों पर हमला कर दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऐलान किया कि बांग्लादेश की लड़ाई अब भारत की लड़ाई है और आखिरकार 16 दिसंबर 1971 को एक नये राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ.
बांग्लादेश ने भारत से मदद की गुहार लगाई
दरअसल पाकिस्तान ने शुरू से ही अपने दूसरे भाग यानि पूर्वी पाकिस्तान पर सामाजिक और राजनैतिक दबाव बनाना शुरू कर दिया था. पूर्वी पाकिस्तान संसाधन में पाकिस्तान से बेहतर था लेकिन राजनीति में उसका प्रतिनिधित्व बेहद कम था. पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश ने आवाज उठाई तो उस पर जुल्म ढ़ाये गए. ऐसे में मदद की गुहार हमेशा भारत से लगाई गई. भारत ने भी आगे बढ़कर बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराने में हरसभंव मदद की. बांग्लादेश भी मानता है कि बिना भारत के योगदान के उसे आजादी नहीं मिलती.
पाकिस्तानी सेना का घिनौना चेहरा
अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान पर अत्याचार करने और लोगों को मौत के घाट उतारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा था. पाकिस्तानी सेना के कत्ल-ए-आम और लगातार बढ़ते अत्याचार के चलते बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत में शरण लेने पर मजूबर होने लगे. देखते देखते भारत में बांग्लादेशी शरणार्थियों की संख्या एक करोड़ तक पहुंच गई. तत्कालीन भारत सरकार ने न सिर्फ इन शरणार्थियों की मदद की बल्कि उनके लिए बिहार, बंगाल, असम, त्रिपुरा में राहत शिविर भी लगवाई. पाकिस्तानी सेना के आतंक से बचने के लिए बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों के भारत आने से शरणार्थी संकट बढ़ने लगा. इससे भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया. इसे देखते हुए मार्च, 1971 में इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही. जुलाई, 1971 में भारतीय संसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़ाकों की मदद करने की घोषणा की गई. भारतीय सेना ने मुक्ति वाहिनी के सैनिकों को मदद और प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया.
भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाया मुद्दा
यही नहीं पूर्वी पाकिस्तान पर पाकिस्तान के दमनकारी कार्रवाई और मानवाधिकारों के उल्लंघन को भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में जोर शोर से उठाया और हस्तक्षेप की मांग की. हालांकि कई देश इसके खिलाफ थे लेकिन भारत ने फिर भी बांग्लादेश की मदद की. भारत ने बांग्लादेश को न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर मदद की बल्कि इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने की भी कोशिश की. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिका समेत कई देशों का दौरा कर पाकिस्तानी सेना के बांग्लादेश में किए जा रहे जुल्म और नरसंहार के बारे में बाताया. हालांकि अमेरिका ने तब भारत की मांगों को मानने और पाकिस्तान को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किया.
3 दिसंबर को पाकिस्तान ने युद्ध की शुरुआत की
शांति स्थापित करने के भारत के लगातार प्रयास के बावजूद जब पाकिस्तानी वायु सेना ने 3 दिसंबर को भारतीय वायु सेना के ठिकानों पर हमला बोल दिया. तब भारत को इस लड़ाई में सीधे तौर पर शामिल होना पड़ा. इसके साथ ही 1971 की भारत-पाक युद्ध की शुरुआत हो गई. पाकिस्तान, चीन, अमेरिका और इस्लामिक देश बांग्लादेश के गठन के खिलाफ थे. लेकिन भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं और लोगों को पूरा सहयोग दिया ताकि वो पाकिस्तान के पंजे से छुटकारा पा सके.
पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने किया सरेंडर
तेरह दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के बहादुरी और शौर्य के सामने पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए. 16 दिसंबर 1971 को शाम 4.35 बजे पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का ये सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था. इसके साथ ही दुनिया के मानचित्र पर एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ. 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय और बांग्लादेश के निर्माण ने पूरी दुनिया में जहां भारत क मान और शान को बढ़ाया. भारत ने यह भी दिखा दिया कि मानवता की रक्षा और अपनी सुरक्षा के लिए वह पूरी तरह से सक्षम और समर्थ है. 1971 में बांग्लादेश का जन्म दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक घटनाओं में से एक थी. भारतीय सैनिकों ने जिस साहस से सिर्फ तेरह दिन पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया, उसके साथ ही दुनिया का नक्शा बदल गया और दुनिया के नक्श पर बांग्लादेश नया देश बन गया.
बांग्लादेश की आवाज़ बने शेख़ मुजीबुर रहमान
महज़ 24 साल पहले जब पाकिस्तान का जन्म हुआ तो मौजूदा बांग्लादेश उसका पूर्वी हिस्सा था. 1947 में पाकिस्तान धार्मिक आधार पर भारत से अलग होकर नया देश बना. पूर्वी बंगाल धर्म की आंधी में उड़कर पाकिस्तान के साथ गया लेकिन धर्मांधता दोनों को बांध कर न रख सकी. स्थापना के बाद पाकिस्तान के हुक्मरानों ने सेक्युलरिज्म और समानता के लिए तमाम वादे किए लेकिन उन्हें निभा न सके. पूर्वी पाकिस्तान में बराबरी के लिए आंदोलन हुए तो पाकिस्तान ने लोगों पर ज़ुल्म शुरू कर दिया गया. ऐसे में शेख़ मुजीबुर रहमान पाकिस्तान के इस हिस्से में लोगों की आवाज़ बनकर सामने आए. आज़ादी के बाद जब उर्दू को पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा बनाने का ऐलान हुआ तो शेख़ मुजीब इसके विरोध में आ गए. उन्होंने मुस्लिम लीग को अलविदा कह दिया. 2 दिसंबर 1969 को उन्होंने ऐलान किया कि पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश कहलाएगा. इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ सशस्त्र संग्राम की अगुवाई की. वे बांग्ला मुक्ति संग्राम अगुवा बने. आख़िरकार भारत की मदद से 1971 में बांग्लादेश आज़ाद मुल्क बना. शेख़ मुजीबुर रहमान आज़ाद बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने और बाद में प्रधानमंत्री भी चुने गए. 15 अगस्त 1975 को सैनिक तख़्तापलट के बाद उनकी हत्या कर दी गयी.
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक
मेजर जनरल जेएफ़आर जैकब
1971 के बांग्लादेश युद्ध में पूर्वी कमान के स्टाफ़ ऑफ़िसर मेजर जनरल जेएफ़आर जैकब ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वे जैकब ही थे जिन्हें सैम मानेकशॉ ने आत्मसमर्पण की व्यवस्था करने ढाका भेजा था. 1971 की युद्ध में आर्मी की पूर्वी कमान को लीड करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल जैकब सबसे पहले ढाका पहुंचे थे. युद्ध के दौरान जैकब मेजर जनरल के पद पर थे. उन्होंने ही पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी से बात कर हथियार डालने के लिए राज़ी किया था.
लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा
पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा भारतीय सेना के कमांडर थे. उन्होंने सेना की छोटी-छोटी टुकड़ियों के सहारे ही इस युद्ध में जीत का पताका फहराया. 30 हजार पाकिस्तानी सैनिकों की तुलना में उनके पास चार हजार सैनिकों की फौज ही ढाका के बाहर थी. सेना की दूसरी टुकड़ियों को बुला लिया गया था, लेकिन उनके पहुंचने में देर हो रही थी. इस बीच लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ढाका में पाकिस्तान के सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी से मिलने पहुंचे गए और उन्होंने इस तरह दबाव डाला कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया.
मेजर होशियार सिंह
मेजर होशियार सिंह ने अपने जज्बे से पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने के लिए मजबूर करने में बड़ी भूमिका निभाई. उन्हें जम्मू कश्मीर के दूसरी तरफ शकरगढ़ के पसारी क्षेत्र में जिम्मेदारी दी गई थी. उन्होंने अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए जरवाल का मोर्चा फतह किया था. मेजर होशियार सिंह ने 3 ग्रेनेडियर्स की अगुवाई करते हुए अपना अद्भुत पराक्रम दिखाया और दुश्मन को पराजय का मुँह देखना पड़ा. उन्हें बाद में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने 1971 में बसंतसर की जंग में अपने साहस और सैन्य कुशलता से दुश्मनों के हौंसलों को पस्त कर दिया था. उन्होंने अपने युद्ध कौशल और पराक्रम के दम पर दुश्मनों को एक इंच आगे बढ़ने नहीं दिया था और उन्हें भारी शिकस्त देते हुए पीछे ढकेल दिया था. वे सबसे कम उम्र में मरणोपरांत परमवीर चक्र पाने भारतीय जांबाजों में से एक हैं.
लांस नायक अलबर्ट एक्का
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में लांस नायक अलबर्ट एक्का ने वीरता, शौर्य और सैनिक हुनर का प्रदर्शन करते हुए अपने यूनिट के सैनिकों की रक्षा की थी. 14 गार्ड्स को पूर्वी सेक्टर में अगरतल्ला से 6.5 किलोमीटर पश्चिम में गंगासागर में पाकिस्तान की रक्षा पंक्ति पर कब्जा करने का आदेश मिला. लांस नायक अल्बर्ट एक्का पूर्वी मोर्चे पर गंगासागर में दुश्मन की रक्षा पंक्ति पर हमले के दौरान “बिग्रेड आफ द गार्ड्स बटालियन’ की कम्पनी में तैनात थे. उन्होंने इस अभियान में अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तान के कई बंकर को ध्वस्त कर दिया था. इस अभियान में घायल होने की वजह से वे शहीद हो गए. भारत सरकार ने इनके बलिदान को देखते हुए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया.
विजय दिवस के 51 साल पूरे
विजय दिवस भारत के सैनिकों के पराक्रम, साहस और शौर्य की गाथा है. पाकिस्तान पर अपनी इस जीत को भारत जहां विजय दिवस के रूप में मनाता है, वहीं बांग्लादेश इसको उच्चारण के थोड़े अंतर से ‘बिजॉय दिबोस’ के नाम से मनाता है. बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और इसमें भारत का योगदान मानवीय इतिहास में एक अनोखी घटना के रूप में दर्ज रहेगा. यह युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक युद्ध था जिसने भारत के सैन्य क्षमता को पूरी मजबूती के साथ वैश्विक स्तर पर स्थापित कर दिया. इस युद्ध के 51 साल पूरे हो गए हैं.