सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने मिशन-2024 के मद्देनजर नया सियासी दांव चल दिया है। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव को अपना हथियार बना लिया है। राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा है कि राजभर जानबूझकर सपा से दूरियों को जाहिर कर रहे हैं ताकि भाजपा के करीब आ सकें।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले वह एक बार फिर प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए पहेली बनते नजर आ रहे हैं। उन्होंने मुर्मू को समर्थन देकर एक तरीके से सपा गठबंधन से मुक्त होने का संकेत दे दिया है। राष्ट्रपति चुनाव के बहाने ही सही सपा से बनती दूरियों को जगजाहिर करना उनकी सोची समझी राजनीति मानी जा रही है। यह ऐसा दांव हैं जिससे उन्होंने खुद को प्रमुख दलों के लिए सामने मिशन-2024 के मद्देनजर विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है।
ओमप्रकाश राजभर के इस कदम के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव परिणाम के तत्काल बाद से ही राजभर सपा नेतृत्व से दूर होने लगे थे। अव्वल तो सीटों के साथ ही टिकट बंटवारे को लेकर वह सपा नेतृत्व से संतुष्ट नहीं थे। चुनाव परिणामों के कुछ ही दिन बाद दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेता धर्मेंद्र प्रधान के साथ उनकी मुलाकात हुई। जिसके बाद से उनके फिर से भाजपा के करीब आने की चर्चाएं होने चलने लगी। इसके बाद आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव में सपा की हार के बाद से अखिलेश यादव को एसी कमरे से बाहर निकलने का सुझाव मीडिया में देकर राजभर ने सपा से दूरियां और बढ़ाने का काम किया।
यह बयान सपा खेमें में तीर की तरह चला। जिसके बाद से सपा की तरफ से राजभर को यह संकेत दे दिए गए थे कि अब और साथ नहीं चलेगा….। इसके कई कारण थे। एक ओर भाजपा ने मिशन-2024 के लिए उन्हें अपने पाले में खींचने की कोशिशें शुरू कर दी थीं, वहीं अखिलेश यादव से उन्हें मनचाही तवज्जो नहीं मिल रही थीं। वहीं सुभासपा भी सपा के जरिये सत्ता तक पहुंचने का सपना ध्वस्त होने से अंदरखाने निराश थी।
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा की बैठक में राजभर को नहीं बुलाया जाना अखिलेश यादव की नाराजगी को जाहिर करने के लिए पर्याप्त है। दूसरे ही दिन एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू की बैठक में राजभर को न्यौता मिलना लोगों को यह बता गया कि वह भाजपा से दूर भी नहीं हैं। तमाम कुरेदने के बाद भी 2024 चुनाव में भाजपा के साथ जाने के सवाल को वह लगातार खारिज कर सपा से ही गठबंधन की बात करते रहे।
यह जरूर कहा कि अखिलेश यादव ही गठबंधन से बाहर कर देंगे तब और विकल्पों पर विचार करेंगे। इन विकल्पों में भी उन्होंने भाजपा का नाम सीधे नहीं लिया। पूछने पर मायावती का नाम लिया। कहा कि मायावती चार बार सीएम रहीं हैं उनके जैसा शासन किसी ने नहीं चलाया। उनके यह बयान भी एक सोची समझी रणनीति के तहत आते रहे। दरअसल, इन बयानों के जरिये वह अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा पर दवाब बनाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने एक बार भी भाजपा पर खुलकर हमला नहीं किया।
सीएम और गृहमंत्री ने फोन कर बुलाया और बात की
ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा के साथ बैठक में रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को बुलाया गया लेकिन गठबंधन में होने के बावजूद उन्हें नहीं बुलाया गया। एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू लखनऊ आने वाली थीं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें बुलाया। मुर्मू से मुलाकात कराई। मुख्यमंत्री ने समर्थन देने की बात कही। 12 जुलाई को समर्थन की घोषणा नहीं किए जाने पर गृहमंत्री शाह ने फोन कर दिल्ली बुलाया। दिल्ली में शाह से मुलाकात हुई। जिसमें उन्होंने कहा कि आप जिस दलित, वंचित और शोषित समाज की राजनीति करते हैं, उसी समाज से मुर्मू जी हैं, समर्थन करने का आग्रह किया।
राजभर ने कहा कि उनसे एक गलती हो गई है। किसी को सही सलाह नहीं देनी चाहिए। उन्होंने अखिलेश यादव को एसी कमरे से निकलने और कार्यकर्ताओं के बीच जाने की जो सलाह दी, वह सपा अध्यक्ष के नवरत्नों को बुरी लगी। इनके सुझाव पर ही अखिलेश यादव ने यशवंत सिन्हा के साथ हुई बैठक में नहीं बुलाया। उन्होंने कहा कि यह कहा जा रहा है कि सपा ने उन्हें फार्च्यूनर दी है। यह झूठ है।
इसलिए भाजपा ने अपने पाले में लिया
● पूर्वांचल की एक दर्जन सीटों पर राजभर समाज में सुभासपा की मजबूत पकड़
● लोकसभा चुनाव वर्ष 2019 में कई सीटों पर राजभर वोट न मिलने से भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हुआ
● गाजीपुर व घोसी भाजपा हारी, गाजीपुर में अफज़ाल जीते, सुभासपा तीसरे नंबर पर-33 हजार वोट
● आजमगढ़ में तीसरे नंबर पर रहे, 10 हजार से ज्यादा वोट मिले।
● घोसी संसदीय सीट पर 39 हजार वोट मिलना
● बलिया सीट पर भाजपा 15500 वोट से जीती, सुभासपा को 35900 वोट मिले
● 13 सीटों पर राजभऱ की पार्टी नंबर तीन पर रही
● अगले आम चुनाव से पहले भाजपा चाहती है मजबूत गठबंधन
भाजपा के पक्ष में जाने वाली घटनाएं
● विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद दिल्ली में वरिष्ठ भाजपा नेता से मिले
● आठ जुलाई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले
● 13 जुलाई को दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मिले
● राष्ट्रपति पद के लिए मुर्मु को समर्थन देने का किया ऐलान
● समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने के दिए संकेत
सपा से दूरियों के कारण
● विधानसभा चुनाव में मनमाफिक सीटें और प्रत्याशी नहीं मिलना
● बेटे अरविंद या अरुण को एमएलसी का टिकट न दिया जाना
● यशवंत सिन्हा की बैठक में ओम प्रकाश राजभर को नहीं बुलाया जाना
● सुभासपा से ज्यादा रालोद को तवज्जो दिया जाना
● भाजपा से मंत्रिमंडल में लेने पर हुई चर्चा
पहले से थी चर्चा
उनकी चालें इशारा कर रहीं थीं कि आमचुनाव के समय ही अब वह गठंबधन का नया दांव चलेंगे। चर्चाएं पुख्ता सी होने लगीं कि राजभर घोसी, चंदौली, बलिया, आंवला अंबेडकरनगर, सलेमपुर में पार्टी के मजबूत प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है। नतीजतन, मिशन-2024 में 80/80 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही भाजपा के बड़े नेताओं ने भी उनसे बात की।