समूचे बुंदेलखंड (Entire Bundelkhand) में आस्था का केंद्र श्री जुगल किशोर जी मंदिर (Shri Jugal Kishore Ji Mandir) में तीन दिवसीय दीपोत्सव (deepotsav) मनाने की विशेष परंपरा को सैंकड़ों वर्षो से चली आ रही है जिसमें पन्ना सहित पड़ोसी जिलों एवं बुंदेलखंड (Bundelkhand) के विभिन्न जिलों के लोग पन्ना की दिवारी देखने आते हैं।
जिला मुख्यालय में परीवा के दिन दिवारी नृत्य विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है। यहाँ उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले सहित विभिन्न जिलों के बड़ी संख्या में ग्वालों की टोलियां आती हैं जबकि मध्यप्रदेश के छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़ आदि जिलों के ग्रामीण इलाकों से ग्वाले यहाँ आते हैं और यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में नृत्य कर अपने को धन्य समझते हैं। पन्ना सहित पड़ोसी जिलों के ग्रामीण अंचलों से सैकड़ों की संख्या में ग्वालों की टोलियां यहाँ रात्रि 12 बजे से ही पहुंचने लगती हैं। प्रथमा को सुबह 5 बजे से भगवान जुगल किशोर जी के दरबार में माथा टेकने के साथ ही दिवारी नृत्य का सिलसिला शुरू हो जाता है जो पूरे दिन चलता है। ग्वालों की टोलियां नगर के अन्य मंदिरों के प्रांगण में भी दिवारी नृत्य का हैरतांगेज करतब का प्रदर्शन करते हैं।
इस वर्ष ग्रहण की वजह से दीपावली के एक दिन बाद बुधवार को सुबह से ही हांथों मे मोर पंख लिए तथा रंग बिरंगी पोशाक पहने ग्वालों की टोलियों का जुगल किशोर जी, प्राणनाथ जी, बलदाऊ जी, श्रीराम जानकी आदि मंदिरों में आने का सिलसिला शुरू हो गया था। ग्वाले पूरे भक्ति भाव के साथ भगवान की नयनाभिराम छवि के दर्शन करने के उपरांत पूरी मस्ती के साथ नगाड़ा, ढोलक और मजीरों की धुन में दिवारी नृत्य व रोमांचकारी लाठी बाजी का प्रदर्शन करते हैं जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां खिंचे चले आते हैं।
भगवान श्री कृष्ण को बताते हैं अपना सखाः-
दिवारी नृत्य का प्रदर्शन करने वाले पूरे अधिकार के साथ भगवान श्री कृष्ण को अपना बाल सखा मानते हैं। इसी आत्मीय भाव को लेकर ग्वाले तपोभूमि पन्ना में आकर मंदिरों में माथा टेकते हैं तो उनमें असीम ऊर्जा का संचार हो जाता है। इसी भाव दशा में ग्वाले सुध बुध खोकर जब दिवारी नृत्य करते हैं तो उन्हें इस बात की अनुभूति होती है मानो बालसखा कृष्ण स्वयं उनके साथ दिवारी नृत्य कर रहे हैं। गाँव से आई टोली के सदस्य ने बताया कि उनकी टोली में कई मौनी हैं। हम लोग दीपावली को चित्रकूट में थे और बुधवार सुबह भगवान श्री जुगल किशोर जी के दरबार में आकर माथा टेका है।