दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने कहा कि आपराधिक मामलों (criminal cases) में निष्पक्ष सुनवाई न सिर्फ संवैधानिक लक्ष्य (constitutional goal) है, बल्कि यह इसमें शामिल प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) भी है। निष्पक्ष सुनवाई (Fair trial) इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इससे मामले में आरोपी को अपना बचाव करने का उचित अवसर मिलता है। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा (Justice Swarnakanta Sharma) ने फैसले में कहा कि सच्चाई का पता लगाना और किसी सही व न्यायसंगत निर्णय पर पहुंचना प्रत्येक अदालत का संवैधानिक कर्तव्य है। उन्होंने नाबालिग से यौन उत्पीड़न के आरोप में दर्ज मामले में आरोपी की ओर से दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
आरोपी की ओर से याचिका में निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पीड़िता समेत दो गवाहों से दोबारा जिरह करने की उसकी मांग को खारिज कर दी गई थी। आरोपी ने न्यायालय को बताया कि उसका वकील मामले में दो गवाहों से जिरह नहीं कर पाया और यह बात उसके लिए पूर्वाग्रह पैदा कर रही है, क्योंकि इससे मामले का परिणाम प्रभावित होगा। याचिकाकर्ता ने कहा कि पीड़िता की उम्र को लेकर विवाद है, ऐसे में उसके खिलाफ दर्ज मामला पॉक्सो कानून के दायरे में नहीं आता है।
जस्टिस शर्मा ने याचिकाकर्ता को दिल्ली उच्च न्यायालय अधिवक्ता कल्याण कोष में 5,000 रुपये जमा करने की शर्त पर गवाहों से जिरह करने की अनुमति दे दी। उन्होंने कहा कि सत्य का पता लगाने और न्यायसंगत व सही निर्णय पर पहुंचने के लिए किसी भी व्यक्ति के पास ‘जिरह’ जांच और दोबारा जिरह करने के लिए व्यापक विवेकाधीन शक्तियां हैं, लेकिन इसे विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए न कि मनमाने ढंग से।