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देश के कल्याण में जुटे “कल्याण ” की बदौलत ही लोगों के सामने पेश हुआ हिन्दुत्व, राम मंदिर में अहम योगदान

5 जनवरी 1932 को यूपी (aligarh)के अलीगढ़ जिले के अतरौली में भारतीय राजनेता कल्याण सिंह (kalyan singh) ने पहली सांस ली थी। राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रह चुके कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद भी ग्रहण कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर कल्याण सिंह ने दो बार अपने नाम का सिक्का जमाया और उन्हें 26 अगस्त 2014 को राजस्थान का राज्यपाल घोषित किया गया। लोगों के बीच में अपने कार्यों के जरिए कल्याण सिंह ने अपना नाम राष्ट्रवादी राजनेता के नाम पर स्थापित किया।

राजनीति में कल्याण सिंह ने अपनी एक अलग छवि बना कर लोगों की विचारधारा में काफी अधिक परिवर्तन लाया। लेकिन फिर भी उन्हें एक विरोधी दिग्गज नेता के रूप में लोग जानते थे। आज यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में आखिरी सांस ली और दुनिया को अलविदा कह गए। उनके जाने के बाद कल्याण सिंह द्वारा किए गए कार्यों के बारे में बात करना जरूरी है तो आइए उनके जीवन के कुछ अहम भागो पर प्रकाश डालते हैं। वैसे तो भारतीय राजनीति के लिए कल्याण सिंह का जाना एक भारी क्षति है जिसकी भरपाई किसी भी तरीके से नहीं की जा सकती।

कहां हुआ कल्याण सिंह का लालन-पालन

kalyan singhकल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को यूपी के अलीगढ़ जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। वह अंग्रेजों के शासनकाल में हुए थे उस समय यह इलाका संयुक्त प्रांत कहलाता था। अपने प्रारंभिक शिक्षा तो कल्याण सिंह ने अलीगढ़ से  पूरी की और स्थानीय महाविद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त की। अपने जीवन में सदैव कल्याण सिंह ने सात्विक छवि को अपनाते हुए सभी कार्य को पूरा किया। कल्याण सिंह ने अपने जीवन में शाकाहारी भोजन का सेवन किया और अपने युवावस्था में उनको कबड्डी खेलने का बहुत ही अधिक शौक था।

राम मंदिर के लिए कुर्बान कर दी थी सीएम की कुर्सी

90 के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन पूरे चरम पर था और इस आंदोलन के सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे। केवल उनके कारण ही यह आंदोलन यूपी से निकलकर देखते ही देखते पूरे देश में व्यापक रूप से फैल गया। जनता के सामने हिंदुत्व की पेशकश करने वाले राजनेता कल्याण सिंह ही थे। इसके साथ ही उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक का साथ भी मिल गया, जिसके बाद आंदोलन ने और भी तेजी पकड़ ली। ज्ञात हो कि शुरू से ही कल्याण सिंह आर एस एस के जुझारू कार्यकर्ता भी थे। इसका पूरा लाभ यूपी में बीजेपी को मिल रहा था और साल 1991 में यूपी में भाजपा की सरकार भी बन गई।बीजेपी के पास ये पहला मौका था जब यूपी में बीजेपी ने इतने प्रचंड बहुमत के बीजेपी के पास ये पहला मौका था जब यूपी में बीजेपी ने इतने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी। वह भी कल्याण सिंह के नेतृत्व में।जिस आंदोलन के माध्यम से यूपी में बीजेपी ने अपने पांव पसारे उसके सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे। इसीलिए मुख्यमंत्री के लिए कोई और नेता दावेदार हो ही नहीं सकता था उन्हें ही मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया । जब तक कल्याण सिंह का कार्यकाल रहा सभी चीजें सुचारू रूप से चलती रहीं । राम मंदिर आंदोलन के चरम पर होने के कारण साल 1992 में बाबरी का विध्वंस हो गया ।यह एक ऐसी घटना थी जिसके बाद भारत की राजनीति में एक अलग ही मोड़ ले लिया। इसके बाद केंद्र से लेकर उत्तर प्रदेश की सरकार की सभी जड़े हिलती दिखीं। कल्याण सिंह ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी भी खुद ही ले ली और 6 दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से रिजाइन दे दिया । इसके बाद ही उनका कद और भी अधिक नामचीन हो गया फिर उनको प्रधानमंत्री बनाने के बारे में बात होने लगी।

जीवन के कुछ दिलचस्प किस्से

– कल्याण सिंह शुरू से ही राष्ट्रीय सेवा संघ में एक्टिव थे और पूर्णकालिक सदस्य के रूप में अपने काम किया करते थे। 1975 में आपातकाल के समय उनको 21 महीने तक जेल में बंद रखा गया था।

– जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने स्कूलों में भारत माता की प्रार्थना और वंदे मातरम का गीत गाना निवार्य कर दिया था।

कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह जी राजनीति में एक्टिव हैं और साल 2014 में वह सांसद बने थे तो वही कल्याण सिंह का पोता संदीप कुमार सिंह इस समय योगी आदित्यनाथ सिंह की सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री के पद पर कार्यरत है।

अटल बिहारी बिहारी वाजपेई को माना आदर्श

kalyan singhकल्याण सिंह ने अपने राजनीतिक करियर में हमेशा अटल बिहारी बाजपेई को प्राथमिकता दी और उनको अपना आदर्श माना। लेकिन एक बार राजनीतिक जीवन में उनके ऐसा भी कुछ हुआ  कि  कल्याण सिंह , अटल बिहारी बाजपेई से नाराज होकर बीजेपी से अपना मुंह मोड़ लिया और नई राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का निर्माण कर लिया। इसके बाद अटल बिहारी बाजपेई के निवेदन पर ही वे भाजपा में वापस आ गए। लेकिन फिर से कुछ समय बाद साल 2009 में उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ दिया और समाजवादी पार्टी में जुड़ गए । यहां पर भी यह बात खत्म नहीं हुई साल 2013 में एक बार फिर से कल्याण सिंह ने बीजेपी का हाथ थाम लिया मोदी सरकार के आने के बाद कल्याण सिंह को राजस्थान और हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया ।