रिर्पोट :- गौरव सिंघल, वरिष्ठ संवाददाता, सहारनपुर मंडल : शहीद दिवस के अवसर पर दिशा सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन देवबंद के तत्वावधान में भारत माता की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले अमर शहीद सरदार भगत सिंह, सुखदेव सिंह और राजगुरू को इंकलाब जिंदाबाद, भारत माता की जय के उद्घोष के साथ श्रद्धांजलि अर्पित की गई। देवबंद के गांधी कालोनी में आयोजित कार्यक्रम में संयोजक बिजेंद्र गुप्ता पूर्व महामंत्री भाजपा देवबंद ने शहीदों के चरणों में नमन करते हुए कहा कि 23 मार्च भारत की स्वतंत्रता के लिए खास महत्व रखता है। भारत इस दिन को हर वर्ष शहीद दिवस के रूप में मनाता है।
वर्ष 1931 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च के ही दिन फांसी दी गई थी। भारत ने इस दिन अपने तीन वीर सपूत को खोया था। उनकी शहादत की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है। भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। श्रीमती शुभलेश शर्मा व श्रीमती ललिता प्रजापति ने कहा कि शहीद भगत सिंह व उनके साथीगण ने पहले लाहौर में बर्नी सैंडर्स की हत्या की और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की।
इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को भगतसिंह को मात्र 24 वर्ष की आयु में इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया। देश की आजादी के लिए तीनों वीर सपूतों ने बलिदान दिया था। असल में इन शहीदों को फांसी की सजा 24 मार्च को होनी थी, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने बगावत के डर से जल्द से जल्द फांसी देने के लिए एक दिन पहले ही दे दिया था। जिसके चलते तीन वीर सपूतों को 23 मार्च को ही फांसी दी गई थी।
शहीदों की चिताओं पर लगेगे हर वर्ष मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निंशा होगा। बबलू सैनी व अजीत वर्मा ने कहा कि हम सबको अमर शहीद सरदार भगत सिंह, सुखदेव सिंह और राजगुरू के बलिदान को भूलना नहीं चाहिए। उनके सर्वोच्च बलिदान से आजादी की चिंगारी भड़क उठी थी। जिसके फलस्वरूप भारत माता गुलामी की जंजीरो से आजाद हुई। जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे, उन्होंने कई किताबें पढ़ीं थी। 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके दोनों साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में राखी बहोत्रा, मनोज सैनी, शालू कल्याण, दीपांकर, विनोद पटेल, नीशु धीमान, आशीष यादव, ओम कुमार, गोलू मोरये, डाक्टर महेन्द्र सिंह, दौलतराम, मुन्ना भगत, आशुतोष विश्वकर्मा आदि उपस्थित रहे।