दिल्ली दंगों में पुलिस की जांच कई मौकों पर सवालों के घेरे में आई है. अब दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने भी गुरुवार को पुलिस जांच पर तल्ख टिप्पणी कर दी है. आरोपी ताहिर हुसैन के भाई शाह आलम और दो अन्य लोगों को आरोपों से मुक्त करते हुए कोर्ट ने कहा है कि ये दंगे दिल्ली पुलिस की विफलता के लिए हमेशा याद रखे जाएंगे.
दिल्ली दंगों पर कोर्ट की पुलिस को फटकार
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा है कि मैं अपने आप को ये कहने से नहीं रोक पा रहा हूं इतिहास बंटवारे के बाद हुए इस सबसे भयंकर दंगे को पुलिस की विफलता के तौर पर याद रखेगा. इस कार्रवाई में पुलिस अधिकारियों की निगरानी में साफ कमी महसूस की गई, वहीं पुलिस ने भी जांच के नाम पर कोर्ट की आंखों में पट्टी बांधने का काम किया.
जज ने जोर देकर कहा कि दंगों की कार्रवाई के दौरान पुलिस ने सिर्फ चार्जशीट दाखिल करने की होड़ दिखाई है, असल मायनों में केस की जांच नहीं हो रही. ये सिर्फ समय की बर्बादी है. कुछ आंकड़ों के जरिए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने बताया कि दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में हुए दंगों में 750 मामले दाखिल किए गए हैं, उसमें भी ज्यादातर केस की सुनवाई इस कोर्ट द्वारा की जा रही है. सिर्फ 35 मामलों में ही आरोप तय हो पाए हैं. कई आरोपी भी सिर्फ इसलिए जेल में बंद पड़े हैं क्योंकि अभी तक उनके केस की सुनवाई शुरू नहीं हो सकी है.
ताहिर के भाई को किया डिस्चार्ज
अब जिस केस में कोर्ट ने सख्त रवैया दिखाया है वो दिल्ली दंगों से जुड़ा हुआ है. दरअसल पिछले साल 24 फरवरी को ओम सिंह नाम के शख्स की पान की दुकान को जला दिया गया था. उस घटना के बाद अगले ही दिन चांद बाग स्थित हरप्रीत की फर्नीचर की दुकान में लूटपाट हुई थी और फिर उसमें आग लगा दी गई. उस घटना के बाद दयालपुर पुलिस द्वारा ताहिर हुसैन के भाई आलम और दो और लोगों को आरोपित बनाया गया था.
लेकिन अब कोर्ट द्वारा ताहिर हुसैन के भाई को डिसचार्ज कर दिया गया है. कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली दंगों की जांच के दौरान पुलिस ने कई मौकों पर कोई कार्रवाई नहीं की. बिना किसी चश्मदीद गवाहों से मुलाकात के, बिना तथ्य के सिर्फ चार्जशीट दाखिल कर दी गई. कोर्ट ने पुलिस से भी सवाल पूछा कि जब दंगे के दौरान लूटपाट हो रही थी, हिंसा हो रही थी. तब लोगों ने इस भीड़ को कैसे नहीं देखा. ये बात समझ से परे है और सवाल खड़े करती है.