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दिल्ली के जंतर-मंतर पर भड़काऊ नारेबाजी मामले में प्रीत सिंह की जमानत याचिका खारिज, कोर्ट ने कही यह बात

दिल्ली की एक अदालत ने जंतर मंतर के पास सांप्रदायिक नारे लगाने वाले कार्यक्रम के एक आयोजक की जमानत याचिका खारिज कर दी है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनिल अंतिल ने इस मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार प्रीत सिंह को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि संविधान में सभा करने और अपने विचार व्यक्त करने के अधिकार दिए गए हैं, लेकिन ये अधिकार निरंकुश नहीं हैं और अंतर्निहित उपयुक्त प्रतिबंधों के साथ इनका उपयोग किया जाना चाहिए.

सिंह पर आठ अगस्त को जंतर मंतर पर एक रैली के दौरान विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने और युवाओं को एक विशेष धर्म के खिलाफ प्रचार करने के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था. न्यायाधीश ने रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री और अभियोजन पक्ष के अभ्यावदेन के आधार पर पाया कि प्रथम दृष्टया अभियुक्त ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता में और कार्यक्रम के मुख्य आयोजक के रूप में सक्रिय भागीदारी की थी.

भड़काऊ भाषणों का किया समर्थन

अदालत ने 27 अगस्त को पारित अपने आदेश में कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा कार्यक्रम के लिए अनुमति नहीं दिए जाने के बावजूद और केंद्र सरकार के कोविड-19 संबंधी प्रोटोकॉल की पूरी तरह अवहेलना करते हुए इसे आयोजित किया गया था. न्यायाधीश ने कहा कि यह उल्लेख करना उचित है कि याचिकाकर्ता ने स्वेच्छा से न केवल कार्यक्रम का आयोजन किया, बल्कि इसमें सक्रिय रूप से भाग लिया. उसने अपनी भाव-भंगिमाओं के जरिए और बीच-बीच में तालियां बजाकर उन भड़काऊ भाषणों की सामग्री और विचारों को समर्थन दिया, जो उस समय प्रतिभागियों ने दिए.

अपने अधिकार का प्रयोग कर रोकना चाहिए था

उन्होंने कहा कि अभियुक्त के प्रभाव को देखते हुए, उससे यह अपेक्षा की जाती है कि उसे उन परिस्थितियों में अपने अधिकार का प्रयोग करना चाहिए था और जनता के व्यापक हित में इस तरह के भड़काऊ विचारों को प्रसारित करने से रोकना चाहिए था. लेकिन याचिकाकर्ता अपने अन्य सहयोगियों के साथ भड़काऊ भाषणों में स्पष्ट रूप से सक्रियता से भाग लेता देखा गया. अदालत ने यह भी कहा कि सह-आरोपी और हिंदू रक्षा दल के अध्यक्ष पिंकी चौधरी की एक अग्रिम जमानत याचिका को इसी आधार पर पहले खारिज किया जा चुका है.