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दिमाग में रहकर भी ज़ुबान पर नहीं आता, इसको नजरअंदाज न करें हो सकती है ये गंभीर बीमारी

हॉलीवुड में शानदार 40 वर्ष गुजारने वाले ब्रूस विलीस ने एक्टिंग से रिटायरमेंट ले लिया है. इसकी वजह है ब्रूस विलीस की बीमारी. इस बीमारी का नाम Aphasia है. ये एक ब्रेन डिसआर्डर है. एक्टर के परिवार ने इंस्टाग्राम पर ये जानकारी शेयर की है कि ब्रूस विलीस अफेसिया (Aphasia) के शिकार हुए हैं और सेहत पर ध्यान देने के लिए वो एक्टिंग को अलविदा कह रहे हैं. बता दें कि ब्रूस विलीस 67 वर्ष के हैं. हालांकि इसके बाद से इस बीमारी को लेकर लोगों में जिज्ञासा बढ़ गई है.अफेसिया (Aphasia) दरअसल एक दिमागी बीमारी है जिसमें दिमाग संवाद यानी communicate करने की क्षमता खो देता है. इंसान की बोलने, लिखने और भाषा को समझने की क्षमता पर असर पड़ने लगता है.

दिमाग को शब्द सूझ रहे होतें है लेकिन दिमाग ज़ुबान को वो सिग्नल नहीं पहुंचा पाता जिससे वो उन शब्दों को कह सके. इस बीमारी में इंसान के दिमाग में विचार तो सही आता है लेकिन उसे कई बार सही शब्द नहीं सूझता और फिर वो शब्द बोलने में भी परेशानी होती है. इसी तरह जब लोग कुछ बोल रहे होते हैं तो उसके लिए भाषा को समझना मुश्किल होता है. हालांकि इस बीमारी के बावजूद इंसान का Intelligence यानी उसकी बुद्दिमता पर फर्क नहीं पड़ता.

इस बीमारी के होने की सबसे बड़ी वजह ब्रेन स्ट्रोक होता है. ब्रेन स्ट्रोक की वजह से दिमाग की किसी नस में ब्लड क्लॉट होना यानी खून की गांठ जमना या फिर किसी नस का ब्लीडिंग की वजह से फट जाना अफेसिया (Aphasia) की वजह बन सकता है. इसके अलावा अचानक हुए एक्सीडेंट से सिर में तेज झटका लगना या सिर में कोई चोट लगने से भी अफेसिया (Aphasia) हो सकता है. अफेसिया वैसे तो किसी भी उम्र में हो सकता है. हालांकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ इसका खतरा बढ़ जाता है. हाई ब्लड प्रेशर के मरीज, दिल के मरीज और बहुत धूम्रपान करने वाले लोगों में ये बीमारी होने का खतरा ज्यादा रहता है क्योंकि इन तीनों बीमारियों में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है. इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि इस बीमारी में ब्रेन का लैंग्वैज प्रोसेसिंग सिस्टम बाधित हो जाता है.

स्ट्रोक के शिकार 20 से 30 प्रतिशत मरीजों को अफेसिया हो सकता है. Indian Academy of Neurology के 2 साल पुराने डाटा के मुताबिक भारत में 20 लाख लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं. दूसरी दिमागी बीमारियों की तरह ही इस बीमारी का इलाज भी वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बना हुआ है. ऐसे मरीज के साथ आसान तरीके से, छोटे-छोटे वाक्यों में बात करनी चाहिए. धीरे बोलना चाहिए. आस-पास शोर कम रखना चाहिए. कुछ मामलों में स्पीच थेरेपी से थोड़ी राहत मिल सकती है. लेकिन इससे पूरी तरह उबरना मुश्किल होता है. अगर ऐसे मरीजों के साथ संवाद लगातार कायम रखा जाए तो नतीजे बेहतर होते हैं – लेकिन ये काम बहुत संयम के साथ किया जाना चाहिए.