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जानिए कब होता है कन्या पूजन, कैसे करें कन्या रूपी माता की पूजा

नवरात्रि के दौरान हर दिन कन्या पूजन (Kanya Pujan) कर सकते हैं मगर महाअष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ होती है तो वहीं, नवरात्रि का समापन कन्या पूजन के साथ होता है। कुछ लोग अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन करते हैं तो कुछ नवमी तिथि के दिन। इस बार 20 अप्रैल मंगलवार को अष्टमी है तो 21 अप्रैल बुधवार को नवमी तिथि है।

कई लोग कन्या पूजन को कंजक पूजन भी कहते हैं। इस दौरान नौ कन्याओं के साथ एक बालक की भी पूजा की जाती है। इसकी वजह है कि नवरात्रि में नौ कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है तो वहीं बालक को बटुक भैरव या हनुमान जी के रूप में मानकर पूजा की जाती है। यही वजह है कन्या पूजन के दौरान कंजकों के साथ बिठाए जाने वाले बालक को लांगुर भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उनकी पूजा और सेवा करने से देवी दुर्गा खुश होती हैं और भक्तों को सुख-शांति और धन प्रदान करती हैं।

मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान 2 साल से 9 साल के बीच की कन्याओं की ही पूजा की जानी चाहिए। वैसे आप चाहें तो 9 साल से ज्यादा उम्र की कन्याओं को भी भोजन करा सकते हैं मगर पूजा केवल 9 साल तक की ही कन्या की होती है।

मान्यताओं के अनुसार 2 वर्ष की कन्या के पूजन से दुख और दरिद्रता दूर होती है, 3 वर्ष की कन्या के पूजन से पूरे परिवार का कल्याण भी होता है, 4 वर्ष की कन्या के पूजन से सुख-समृद्धि मिलती है, 5 वर्ष की कन्या के पूजन से रोग से मुक्ति मिलती है, 6 वर्ष की कन्या के पूजन से ज्ञान, बुद्धि और यश मिलता है, 7 वर्ष की कन्या के पूजन से सुख और ऐश्वर्य कि प्राप्ति होती है, 8 वर्ष की कन्या के पूजन से यश, विजय और लोकप्रियता मिलती है और 9 वर्ष की कन्या के पूजन से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और शत्रुओं का नाश हो जाता है।

why is kanya pujan done on ashtami during navratri importance and other  details | Kanya Pujan 2021: अष्टमी और नवमी दोनों दिन होता है कन्या पूजन,  जानें इसका महत्व और कैसे करें– सबसे पहले नौ कन्याओं और एक बालक के पैर धोकर उन्हें आसन पर बिठाएं।
– उसके बाद सभी कन्याओं का कुमकुम और अक्षत से तिलक करें।
– जो भोजन कन्याओं के लिए बना है उसमें से थोड़ा सा भोजन पूजा स्थान पर अर्पित करें।
– उसके बाद सभी कन्याओं और बालक के लिए भोजन परोसें।
– प्रसाद के रूप में उन्हें फल, जितना सामर्थ्य हो उसके अनुसार दक्षिणा या उनके उपयोग की वस्तुएं दें।
– उसके बाद सभी कन्याओं के पैर छूकर कर आशीर्वाद ग्रहण कर उन्हें सम्मानपूर्वक विदा करें।