अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ऐ दिल जमाने के लिए….बॉलीवुड के इस पुराने गाने की जीती जागती मिसाल हैं 75 साल के मधुसूधन पात्रा. ओडिशा के गंजम जिले के रहने वाले पात्रा ने साबित कर दिया कि अगर आपके दिल में किसी जरूरतमंद की मदद करने का जज्बा हो तो अधिक उम्र भी आड़े नहीं आती. पात्रा को पता चला कि करीब 200 किलोमीटर दूर जगतसिंहपुर में एक महिला और उसकी बेटी बहुत दिक्कत में है. दरअसल शांति नाम की इस महिला के पति को कोविड-19 से पीड़ित होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 21 मई से शांति के पति गंधर्व जेना का कोई अता-पता नहीं है. वो परिवार में अकेला कमाने वाला शख्स था. जो कुछ परिवार ने जोड़ रखा था वो पहले ही कोरोना की दूसरी लहर के लॉकडाउन में खत्म हो चुका था. महिला और उसकी बेटी के लिए जल्दी ही भुखमरी की नौबत आ गई.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक गंजम जिले के रहने वाले मधुसूधन पात्रा को ये पता चला तो वो अपनी पुरानी मोपेड से इतना लंबा सफर तय करने के बाद शांति के घर पहुंचे. इससे पहले उन्होंने मोपेड में एक ट्रक को बांध कर उसमें खाने का सामान और फल आदि भरे.
400 किलोमीटर का सफर
साथ ही पात्रा ने जरूरतमंद मां-बेटी की मदद के लिए अपनी बचत से दस हजार रुपए भी निकाले. बीच में दो ब्रेक के साथ पात्रा ने करीब 10 घंटे तक मोपेड चलाई. उन्होंने आने जाने में कुल 400 किलोमीटर सफर तय किया. पात्रा खुद किसान हैं और गांव में उनकी कुछ जमीन है. उनकी अपनी कोई संतान नहीं है. कोरोना महामारी के दौरान पात्रा और भी जरूरतमंदों की बढ़ चढ़ कर मदद करते रहे हैं.
एक अंजान बुजुर्ग शख्स करीब 200 किलोमीटर मोपेड चलाकर शांति की घास-फूस से बनी झोपड़ी में पहुंचा और मदद सौंपी. ये सब देखकर शांति और उसकी बेटी मिनी की आंखों से आंसू झर झर बहने लगे. शांति की एक और बेटी झिल्ली है जो अपने पति चंदन के साथ दूसरे गांव में रहती है. चंदन भी लॉकडाउन की वजह से बेरोजगारी की मार झेल रहा है. मधुसूधन पात्रा इस परिवार को ढाढस बंधाने के लिए एक रात उनके साथ रूके और अगले दिन अपने घर लौटने के लिए शनिवार को रवाना हुए. शांति और उसके परिवार का कहना है कि ये बुजुर्ग उनके लिए मसीहा बन कर आया. पात्रा ने उन्हें हौसला दिया कि ईश्वर घर के मुखिया गंधर्व जेना का भी जल्दी पता लगवा देगा.
गंधर्व जेना बांस की टोकरियां बना कर परिवार का गुजारा करता था. इस साल 17 मई को उसके कोविड-19 पॉजिटिव होने का पता चला. गंधर्व को पहले पारादीप के कोविड केयर सेंटर में ले भर्ती कराया गया. हालत खराब होने की वजह से गंधर्व को कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में शिफ्ट किया गया. 21 मई से गंधर्व का कोई पता नहीं चल रहा. गंधर्व के दामाद चंदन ने बताया कि कलेक्टर दफ्तर और पुलिस से कई बार इस बारे में गुहार लगाई. हर बार यही जवाब मिलता था कि पता मिलने पर सूचना देंगे. लेकिन वहां से उनसे कभी कोई संपर्क नहीं किया गया. ऐसे में एक बुजुर्ग का इतनी दूर से चलकर मदद के लिए आना मानवता की मिसाल है.
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता स्नेमई आचार्या ने शांति के परिवार को राशन दिलवाने में मदद की. वो गंधर्व जेना की तलाश को लेकर कलेक्टर दफ्तर से संपर्क में हैं. आचार्या ने कहा कि वे मीडिया से भी अपील करती हैं कि गंधर्व जेना का पता लगवाने में मदद करें. जगतसिंहपुर के कलेक्टर संग्राम केशरी मोहापात्रा से इस संबंध में बात की. मोहपात्रा के मुताबिक वो खुद इस मामले को देख रहे हैं और कटक जिला प्रशासन से लगातार संपर्क में हैं, मोहपात्रा ने पुलिस डिपार्टमेंट से तत्काल इस पर बात करने का भरोसा भी दिया. महिला कार्यकर्ता नाजिया आफरीन ने बुजुर्ग के इस तरह मदद के लिए सामने आने पर कहा, “मानवता मुश्किल वक्त से गुजर रही है. हम महामारी को तभी मात देकर अपना वजूद बचाए रख सकते हैं अगर इस चुनौती वाले समय में एक दूसरे की मदद करें. बुजुर्ग मधुसूधन पात्रा का ये काम दूसरों को भी मदद के लिए आगे आने की प्रेरणा देगा.”