जम्मू के किश्तवाड़ जिले में बुधवार को बादल फटने से अचानक आई बाढ़ में कम से कम सात लोगों की मौत हो गई और कई अन्य लापता हो गए. राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और लाहौल-स्पीति जिलों में दो अलग-अलग बाढ़ में नौ लोगों की मौत हो गई और सात लापता हो गए. पिछले हफ्ते, कोंकण के कई हिस्सों में वैज्ञानिकों ने मिनी-बादल फटने को नदियों में बाढ़, बुनियादी ढांचे को नुकसान और कम से कम 100 लोगों की मौत का कारण बताया.
इस मानसून में पश्चिमी हिमालय और पश्चिमी तट पर बादल फटने का सिलसिला जारी है, जिससे मानसूनी घातक साबित होता जा रहा है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार पिछले कुछ सालों में बादल फटने की घटनाओं में काफी बढ़ोतरी हुई है. इस दौरान लोगों को काफी नुकसान भी पहुंचा है. कई लोगों ने इस मानसून में अपनों को खो दिया. 12 जुलाई को भी हिमाचल प्रदेश में मैक्लोडगंज के पास भागसुनाग इलाके में एक संदिग्ध बादल फटने से अचानक आई बाढ़ में कम से कम 10 कारें बह गईं.
आईएमडी (IMD) के अनुसार बादल तब फटता है जब एक घंटे में एक स्टेशन पर 10 सेमी या अधिक बारिश दर्ज की जाती है. “जब नमी की उपलब्धता बहुत अधिक होती है तो बड़े गहरे बादल विकसित होते हैं और जो बूंदें बनती हैं, वे बड़ी और बहुत अधिक संख्या में हो सकती हैं. बादल फटने की घटनाओं के कारण कई मामलों में बादल की डेंसिटी बढ़ जाती है. भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं और इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के रूप में बादल फटने की संख्या भी बढ़ने की संभावना है.
IMD को डेंस रडार नेटवर्क की जरूरत अंतरिक्ष और समय में बहुत छोटे पैमाने के कारण बादल फटने की भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है. इस तरह की घटना का अनुमान लगाने के लिए आईएमडी को पश्चिमी हिमालय जैसे बादल फटने की संभावना वाले क्षेत्रों में बहुत डेंस रडार नेटवर्क की जरूरत हो सकती है. आईएमडी के पास लगभग 150 मौसम केंद्र हैं, जहां से प्रति घंटा बारिश के आंकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं. लेकिन सभी क्षेत्रों को कवर नहीं किया गया है.
मानसून में लोगों को रहना चाहिए सावधान
2019 में भी बादल फटने की कई घटनाएं हुई थीं. चूंकि उनकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है इसलिए लोगों को मानसून के महीनों के दौरान बेहतर तरीके से तैयार रहने की जरूरत है. 2005 में मुंबई में 3 घंटे में 38 सेंटीमीटर बारिश दर्ज की गई थी. ऐसा ही कुछ 2013 में उत्तराखंड में भी हुआ था. मौसम विभाग कई बार नेटवर्क की कमी के कारण सटीक अनुमान नहीं लगा पाता है. ऐसे में लोगों को खुद भी मानसून के दौरान ध्यान रखना चाहिए कि वह नदियों और पहाड़ी क्षेत्रों की तरफ ज्यादा न जाएं.