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चांद को लेकर अमेरिका और चीन में होगी जंग! जानिए क्या है इसके पीछे की वजह

अंतरिक्ष की दुनिया में अमेरिका और चीन के बीच रेस शुरू हो चुकी है। दोनों देशों के बीच अब अंतरिक्ष को लेकर जंग छिड़ती दिखाई दे रही है। चांद को लेकर अमेरिका और चीन के बीच प्रतिद्वंदिता नजर आ रही है। अमेरिका के नील आर्मस्ट्रॉन्ग अपोलो 11 मिशन के तहत 20 जुलाई 1969 को पहली बार चांद पर कदम रखा था। इसके बाद अमेरिका ने अगले तीन साल तक अंतरिक्षयात्रियों के साथ कई अपोलो यान को चांद पर भेजा।

लेकिन अमेरिका को लगा कि यह मिशन खर्चीला है और उसे चांद से कुछ फायदा नहीं होने वाला है, तो उसने चंद्रयात्राओं का बंद कर दिया। साल 1972 में आखिरी अपोलो यान चांद पर गया था। अब एक बार फिर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा मून मिशन की तैयारी में जुट गई है। अब आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत मानव रहित अंतरिक्ष यान को चांद पर भेजेगा जिसे फिर वापस धरती लाने की योजना है।

अमेरिका अब चांद पर स्थायी रूप से डेरा जमाने की तैयारी शुरू कर रहा है। अमेरिका के इस मिशन में दुनिया की तीन बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियां उसके साथ हैं। इन तीनों एजेंसियों का संबंध यूरोप, कनाडा और जापान से हैं। आर्टेमिस मिशन के लिए नासा ने इस अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ समझौता किया है।

इन तीनों स्पेस एजेंसियों के अलावा नासा ने और भी कई देशों के साथ आर्टेमिस समझौता किया है जिनमें मेक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, इटली, यूक्रेन, पोलैंड और लग्जेमबर्ग की स्पेस एजेंसियां शामिल हैं। इस समझौते के मुताबिक, वैज्ञानिक प्रयोगों और चंद्र-संसाधनों के दोहन में उनकी भी साझेदारी हो सकती है। हालांकि रूस ने इस समझौते से दूरी बनी ली है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस ने इस अभियान के अमेरिका-केंद्रित होने की वजह से अपने हाथ पीछे खींच लिए। रूस को लगता है कि चीन के साथ मिलकर एक समानांतर चंद्र-अभियान में शामिल होना बेहतर विकल्प हो सकता है।

चंद्रमा से जुड़े प्रयोगों में चीन दुनिया के दूसरे देशों से बहुत आगे हैं। इस सदी में चीन ने चांद पर सफलता पूर्वक अपना रोवर उतारा, लंबे समय तक ज़मीनी प्रेक्षण किया और चंद्रमा से एक किलो 731 ग्राम नमूने ले आया है। इसके अलावा चीन के दो रोवर- झूरोंग और यूटू-2 अभी भी चांद पर ही हैं।

उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका 2035 में चांद पर अपने ठिकाना बनाने का अपना लक्ष्य हासिल कर लेगा। दोनों अभियानों के प्रस्ताव के मुताबिक, अमेरिका चंद्रमा की सतह की जगह उसकी कक्षा में अपना अड्डा बनाना चाहता है, तो वहीं चीन सतह पर ही अपना बेस कैंप तैयार करना चाहता है।

अब ऐसा लगा रहा है कि चंद्रमा में चीन की बढ़ती दिलचस्पी को देखकर अमेरिका इस तरफ लौट रहा है। अमेरिका को चंद्रमा पर मिलने वाला एक खनिज हीलियम आर्थिक दृष्टि से आकर्षित कर रहा है। चंद्रमा से हीलियम को लाना इतना आसान नहीं है। इसके अलावा कई और भी चीजें हैं जो अमेरिका को चंद्रमा की तरफ आकर्षित कर रही हैं। आने वाले दिनों में चांद को लेकर चीन और अमेरिका के बीच प्रतिद्वंदिता तेज हो सकती है।