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गरूड़ पुराण में आत्महत्या करना है सबसे बड़ा पाप, जिसका अंजाम ऐसा कि सोचने से कांप जाये रूह

मनुष्य के जीवन में ऐसी कई समस्याएं आती है जिनका हल नहीं मिल पाता है और वो पूरी तरह से टूट जाता है। पैसे की तंगी से लेकर रिलेशनशिप प्राब्‍लम या फिर करियर पर आया बड़ा संकट, ऐसी कई विकट समस्याएं होती है जिनका कोई समाधान ना मिलने पर लोगों को एक ही रास्ता नज़र आता है और वो है इस दुनिया को अलविदा बोल देना। खुद की जान लेकर अप्राकृतिक मौत का भागी बनना भले ही लोगों को आसान लगता हो लेकिन यह बहुत ही भयावह होता है। आत्महत्या कर के मनुष्य सभी समस्याओं से मुक्ति तो पा लेता है। शरीर की जिंदगी भले ही खत्‍म हो जाती है, लेकिन आत्‍मा नहीं मरती और उसे बहुत सी यातनाएं सहनी पड़ती है। गरुड़ पुराण में इस बारे में विस्‍तार से बताया गया है। (sucide in Garuda Purana )

बहुत बड़ा अपराध है आत्महत्या करना

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि सुसाइड करना बहुत बड़ा अपराध है क्‍योंकि ऐसी मृत्‍यु के बाद तो व्‍यक्ति की स्थिति और ज्‍यादा खराब हो जाती है। ना तो वह मौत से पहले की तरह अपनों के बीच रह पाता है और ना ही मौत के बाद उसे किसी लोक में कोई जगह मिलती है। ऐसे में उसकी आत्‍मा अधर में ही लटकी रहती है और भटकती रहती है। जब तक कि उस व्‍यक्ति की तय की गई आयु का समय पूरा नहीं होता, तब तक आत्‍मा दूसरे इंसान के रूप में जन्‍म भी नहीं ले पाती है।

अधूरी इच्छा के कारण अतृप्‍त होती है आत्माएं ( sucide in Garuda Purana )

गरुड़ पुराण के मुताबिक मरने के बाद आमतौर पर आत्‍माओं को 10 दिन से लेकर 40 दिन के बीच में शरीर मिल जाता है, लेकिन सुसाइड करने या किसी दुर्घटना में मारे गए व्‍यक्ति की आत्‍मा को तब तक दूसरा शरीर नहीं मिलता है, जब तक कि उसकी तय आयु पूरी न हो जाए। साथ ही किसी अधूरी इच्‍छा या डिप्रेशन के कारण अप्राकृतिक मौत पाने वाले व्‍यक्ति की आत्‍मा अतृप्‍त या असंतुष्‍ट रहती है। ऐसी आत्‍माएं भूत-प्रेत या पिशाच बनकर भटकती रहती हैं। इन्‍हें श्राद्ध, तर्पण आदि अनुष्‍ठानों से भी जल्‍दी मुक्ति नहीं मिलती। इसीलिए आत्‍महत्‍या को सबसे निंदनीय काम माना गया है।