Breaking News

काल भैरव को लगा था ब्रह्म हत्या का पाप, इस स्थान पर है भैरव बाबा का स्थायी निवास

काल भैरव भगवान शिव के ही अवतार हैं। मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर काल भैरव जयंती का पावन पर्व मनाया जाता है। काल भैरव की अराधना करने से व्यक्ति भय मुक्त हो जाता है। आज इस लेख के माध्यम से जानते हैं काल भैरव का अवतरण कैसे हुआ था और उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप क्यों लगा था? आगे पढ़ें काल भैरव के अवतरण की कथा…

शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख मिलता है। एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से पूछा कि इस ब्रह्माण्ड का श्रेष्ठतम रचनाकर कौन है?  इस सवाल के जवाब में ब्रह्माजी ने स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया। ब्रह्माजी का उत्तर सुनने के बाद भगवान विष्णु उनके शब्दों में समाहित अहंकार और अति आत्मविश्वास से क्रोधित हो गए और दोनों मिलकर चारों वेदों के पास अपने सवाल का उत्तर करने के लिए गए। सबसे पहले वे ऋग्वेद के पास पहुंचे। ऋग्वेद ने जब उनका जवाब सुना तो कहा “शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं, वो सर्वशक्तिमान हैं और सभी जीव-जंतु उन्हीं में समाहित हैं”। जब ये सवाल यजुर्वेद से पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया “यज्ञों के द्वारा हम जिसे पूजते हैं, वही सबसे श्रेष्ठ है और वो शिव के अलावा और कोई नहीं हो सकता”।

सामवेद ने उत्तर दिया “विभिन्न साधक और योगी जिसकी आराधना करते हैं वही सबसे श्रेष्ठ है और जो इस पूरे विश्व को नियंत्रित करता है, वो त्र्यंबकम यानि शिव है”। अथर्ववेद ने कहा “भक्ति मार्ग पर चलकर जिसे पाया जा सकता है, जो इंसानी जीवन को पाप मुक्त करता है, मनुष्य की सारी चिंताएं हरता है, वह शंकर ही सबसे श्रेष्ठ है”। चारों वेदों के उत्तर सुनने के बाद भी भगवान विष्णु और ब्रह्माजी का अहंकार शांत नहीं हुआ और वे उनके जवाबों पर जोर-जोर से हंसने लगे। इतने में ही वहां दिव्य प्रकाश के रूप में महादेव आ पहुंचे। शिव को देखकर ब्रह्मा का पांचवां सिर क्रोध की अग्नि में जलने लगा।

उसी वक्त भगवान शिव ने अपने अवतार की रचना की और उसे ‘काल’ नाम देकर कहा कि ये काल यानि मृत्यु का राजा है। वह काल या मृत्यु का राजा कोई और नहीं शिव का अवतार भैरव था। ब्रह्मा के क्रोध से जलते सिर को भैरव ने उनके धड़ से अलग कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भैरव से सभी तीर्थ स्थानों पर जाने के लिए कहा ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल सके। भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर गिर गया। काशी में जिस स्थान पर ब्रह्मा का कटा सिर गिरा था उसे कपाल मोचन तीर्थ कहा जाता है। उस दिन से लेकर अब तक काल भैरव स्थायी रूप से काशी में ही निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है जो भी व्यक्ति काशी यात्रा के लिए जाता है या वहां रहता है उसे कपाल मोचन तीर्थ अवश्य जाना चाहिए।