शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे (President Uddhav Thackeray) ने कहा कि चुनाव आयोग (Election Commission) ने जो फैसला दिया है, वह पूरी तरह से अनपेक्षित है। वे इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट (SC) में चुनौती देंगे। वहीं इस पूरे मामले में NCP प्रमुख शरद पवार (Chief Sharad Pawar) ने भी उद्धव को सलाह दी है कि चुनाव आयोग के फैसले को स्वीकार कर लें।
उद्धव ठाकरे ने कहा कि चुनाव आयोग को अगर जनप्रतिनिधियों की संख्या के आधार पर ही निर्णय देना था, तो इसके लिए इतनी देरी करने की क्या जरुरत थी। बहुत पहले ही इस तरह का फैसला चुनाव आयोग दे सकता था। चुनाव आयोग ने उनसे सदस्यों का प्रतिज्ञा पत्र मंगवाया, प्रतिनिधि सभा का प्रतिज्ञा पत्र मंगवाया, पार्टी की कार्यपद्धति भी मांगी। जब इसके हिसाब से निर्णय ही नहीं देना था, तो इसे मंगवाने की जरुरत क्या थी।
इसी पूरे मामले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शनिवार को पार्टी की बैठक बुलाई है। इस बैठक में शामिल होने के लिए विधायक, सांसद और नेता उद्धव के आवास मातोश्री पहुंच गए हैं। उनके साथ ही ठाकरे समर्थक मातोश्री के बाहर नारेबाजी कर रहे हैं।
इस दौरान उद्धव ठाकरे ने कहा कि चुनाव आयोग ने जिस तरह से चुने हुए जनप्रतिनिधियों के नाम पर पक्ष का आकलन किया है, यह गलत है। अगर ऐसा होगा तो कोई भी अमीर व्यक्ति विधायकों को खरीदकर मुख्यमंत्री और सांसदों को खरीदकर प्रधानमंत्री बन सकता है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि वे चुनाव आयोग के निर्णय का तीव्र विरोध कर रहे हैं और हर लड़ाई लड़ेंगे।
शिवसेना प्रवक्ता संजय राऊत ने कहा कि शिवसेना पिछले 55 सालों से चुनाव लड़ रही है लेकिन भाजपा ने शिवसेना पर हमला किया है। चुनाव आयोग का निर्णय अनपेक्षित और असत्यमेव जयते की तरह है।
विदित हो कि गत दिवस चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के धड़े को असली शिवसेना माना है। आयोग ने शुक्रवार को एकनाथ शिंदे गुट को पार्टी का नाम शिवसेना और चुनाव चिह्न तीर-कमान सौंप दिया। इसके बाद अब उन्हें पहले से दिए गए बालासाहेबंची शिवसेना और दो तलवार एवं ढाल के साथ दिए गए चुनाव चिह्न को फ्रीज कर दिया गया है। वहीं महाराष्ट्र में चिंचवड़ और कस्बा पेठ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव तक के लिए उद्धव ठाकरे गुट आयोग की ओर से दिये गये नाम शिवसेना (उधव बालसाहेब ठाकरे) और जलती मशाल चुनाव चिह्न का इस्तेमाल कर सकता है।
चुनाव आयोग ने अपने निर्देश में पाया है कि 2018 में संशोधित शिवसेना का संविधान आयोग की जानकारी में नहीं है। चुनाव आयोग के आग्रह पर स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे द्वारा लाए गए 1999 के पार्टी संविधान में लोकतांत्रिक मानदंडों को पेश करने के कार्य को संशोधनों ने पूर्ववत कर दिया था। यह पार्टी को जागीर जैसा बना रहा है। आयोग ने कहा है कि आवेदनकर्ता (शिंदे गुट) को जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 29ए तहत 2018 के संविधान में संशोधन करना होगा ताकि आंतरिक लोकतंत्र तैयार किया जा सके।
आयोग ने संसद, महाराष्ट्र विधानमंडल में दोनों गुटों के सांसदों एवं विधायकों के मिले समर्थन का विश्लेषण कर पाया कि शिंदे गुट के साथ अधिक लोकप्रतिनिधि हैं। इसका मतलब है शिवसेना को प्राप्त वोटों में शिंदे गुट के पास अधिक मतदाताओं का समर्थन है। शिंदे का समर्थन करने वाले 40 विधायकों ने पार्टी को मिले कुल 47,82440 वोटों में से 36,57327 वोट हासिल किए। यह 2019 के चुनावों में 55 विजयी विधायकों के पक्ष में पड़े वोटों का 76 प्रतिशत बनता है। वहीं उद्धव गुट को 15 विधायकों का समर्थन है जिन्हें 11,25113 वोट मिले थे।
आयोग के अनुसार पार्टी के पास 2019 के लोकसभा चुनावों में 18 सांसद जीते थे। इनमें से 13 शिंदे गुट और पांच उद्धव गुट के साथ हैं। हालांकि उद्धव के समर्थन में चार का ही हलफनामा मिला है। इसका अर्थ है कि शिंदे गुट के पास पार्टी के 73 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन है।