अब लोग घर पर बैठे ही सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई (Supreme Court hearing) को देख और सुन सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (27 सितंबर) से संविधान पीठ (constitution bench) के सामने लगे मामलों की सुनवाई के सजीव प्रसारण (live broadcast of hearing) की व्यवस्था (Arrangement) की है। इन मामलो में EWS आरक्षण, महाराष्ट्र शिवसेना विवाद, दिल्ली-केंद्र विवाद जैसे मामले शामिल हैं. सुनवाई के दौरान लोग webcast.gov.in/scindia/ लिंक पर जाकर सुनवाई को देख और सुन सकेंगे।
फिलहाल इसे लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइन तो नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक ये लिंक सिर्फ सुनवाई देखने-सुनने के लिए होगा. इस प्रसारण का किसी भी तरीके से पुनर्प्रसारण नहीं किया जा सकेगा. अभी फिलहाल यह व्यवस्था प्रायोगिक दौर में है।
बता दें कि इससे पहले कोरोना वायरस के कहर के बीच सुप्रीम कोर्ट में नई परंपरा की शुरुआत की थी. सुप्रीम कोर्ट में देशभर से ई फाइलिंग के जरिए याचिकाएं दाखिल करने की पहल शुरू की थी।
डिजिटल हस्ताक्षक का इस्तेमाल शुरू
खास बात यह है कि ई-फाइलिंग 24 घंटे में कभी भी की जा सकती है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट की फीस का भुगतान भी ऑनलाइन किया जा सकता है और इस प्रणाली में डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग किया जाएगा.
कई मामलों में हुई ऑनलाइन सुनवाई
दरअसल, कोरोना काल में जब देशभर में सभी कामकाज ठप पड़े हुए थे या ज्यादातर काम ऑनलाइन किए जा रहे थे, तब कोर्ट में भी ऑनलाइनस सुनवाई की सुनिधा शुरू की गई थी. कई मामलों में इस दौरान अदालत ने ऑनलाइन सुनवाई की थी।
इधर, सरोगेसी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ICMR को नोटिस जारी किया है. दरअसल सरोगेसी अधिनियम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है, इस एक्ट के तहत लाभ लेने वालों का वर्गीकरण भेदभावपूर्ण है. ऐसे में यह अनुछेद 14 का उल्लंघन है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि कमर्शियल तौर पर सेरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने से परिवार के भीतर महिलाओं का और अधिक शोषण हो सकता है. क्योंकि, यह एक्ट परोपकार के लिए ऐसा करने की इजाजत देता है। इसके अलावा याचिका में यह भी कहा गया है कि इस नए एक्ट में आयु सीमा को लेकर काफी अस्पष्टता है. यानी कई सवाल अनुत्तरित हैं. गैरवाजिब शर्तों और अस्थाई प्रावधानों की कमी की वजह से इस पर आने वाला खर्च भी बढ़ गया हैं।