संजय को महर्षि वेद व्यास ने दिव्य दृष्टि प्रदान की थी. महर्षि वेद व्यास जी ने ही महाभारत की रचना की थी. वे त्रिकालदर्शी थे, उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से जान लिया था कि कलियुग में धर्म कमजोर हो जायेगा. महर्षि व्यास ने ही वेद को चार भागों में विभाजित किया था. जो बाद में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद कहलाए.
महाभारत की घटनाओं के वे साक्षी थे. नेत्रहीन धृतराष्ट्र को महाभारत का पूरा हाल सुनाने के लिए महर्षि ने संजय को विशेष शक्ति प्रदान की थी. संजय धृतराष्ट्र के दरबार में मंत्री थे. लेकिन पेश से वो एक जुलाहे यानि बुनकर थे. संजय स्वभाव से बहुत ही विनम्र थे
संजय की अर्जुन से मित्रता थी. यह मित्रता बचपन की थी. संयज कृष्ण के परम भक्त थे. संजय की खास बात ये थी की वे स्पष्टवादी थे. वे धर्म के रास्त पर चलने वाले थे. वे गलत को गलत कहने से जरा भी नहीं चूकते थे. महाभारत के युद्ध से पूर्व संजय ने कई बार धृतराष्ट्र को समझाने का प्रयास किया था
महाभारत में युद्ध के दौरान जब अर्जुन धर्म संकट में फंस जाते हैं तो भगवान कृष्ण अपना विराट रूप दिखाते हैं. भगवान के इस विराट रूप को उस समय अर्जुन के बाद संजय ने भी देखा था. महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद संजय हिमालय के लिए प्रस्थान कर गए.