अमेरिका में निर्वासन की आशंकाओं का सामना कर रहे भारतीय युवाओं का एक समूह ने देश भर से व्हाइट हाउस पहुंचा और वहां बाइडन प्रशासन से वरिष्ठ अधिकारियों व प्रभावशाली सांसदों से मिला। इन भारतीय युवाओं ने उनसे अमेरिका में ही रहने देने की अपील की है। अमेरिका में ऐसे दो लाख युवा बचपन या किशोरावस्था में बिना वैध दस्तावेजों के यहां पहुंचे थे और अब युवा हो चुके हैं। अमेरिका में इन युवाओं को ड्रीमर्स कहा जाता है और इनमें बड़ी संख्या में ऐसे युवा शामिल हैं जिनके माता-पिता ग्रीन कार्ड के इंतजार में हैं। इलिनोइस में क्लीनिकल फर्मासिस्ट दीप पटेल के नेतृत्व में युवा भारतीयों का समूह जब व्हाइट हाउस पहुंचा तो उन्हें देख सांसद भी हैरत में पड़ गए। 25 वर्षीय पटेल इस समूह के सह-संस्थापक हैं।
समूचे अमेरिका में प्रत्यर्पण के मामलों का सामना करने वाले इन युवाओं ने अपील की है कि हमें प्रत्यर्पित न करें। उन्होंने कहा, हमें अमेरिका में हमारे घर में रहने दें। इन्हें सांसदों व विधायकों की ओर से आश्वासन दिया गया और धीरज रखने को कहा गया साथ ही अमेरिकी सांसदों ने इन युवाओं की हिम्मत और कोशिशों की सराहना भी की। व्हाइट हाउस पहुंचने वालों में आयोवा से माइनिंग व बायोमेडिकल इंजीनियरिंग करने वाले 21 वर्षीय परीन म्हात्रे व कैलिफोर्निया के नागा राघव श्रीराम भी शामिल रहे।
छह युवाओं से प्रभावित हुए अमेरिकी सांसद
व्हाइट हाउस पहुंचने वाले छह भारतीय युवाओं की हिम्मत से अमेरिकी सांसद भी प्रभावित हुए। उन्होंने युवाओं को सांत्वना दी है। इन युवाओं ने पिछले सप्ताह पूरा वक्त अमेरिकी राजधानी में बिताया। इस दौरान अमेरिकी संसद के दोनों सदनों के सदस्य और सीनेटर उनसे व्यक्तिगत रूप से मिले। सभी ने उनके साहस और पैरवी की कोशिशों की सराहना की।
निर्वासन की तलवार
अमेरिका में बिना वैध दस्तावेजों को यहां पहुंचे इन युवाओं का जन्म भारत में हुआ था। उन्हें बचपन में ही 2005 के आसपास कनाडा से होते हुए अमेरिका ले जाया गया। वर्तमान में वे अमेरिका के डीएसीए कार्यक्रम पर निर्भर हैं जो 2012 में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनका निर्वासन रोकने के लिए रखा था। ट्रंप प्रशासन में यह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। ऐसे में इन पर निर्वासन की तलवार लटकी हुई है।