ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते प्रभाव के कारण आज कई प्रमुख ग्लेशियर पिघल रहे हैं। लंबे समय से कई वैश्विक सम्मलेनों के बाद भी उसका कोई सकारात्मक असर जलवायु पर नहीं पड़ा है। हर साल ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार में वृद्धि देखने को मिल रही है। इस कारण वैश्विक तापवृद्धि में तेजी आ रही है। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक 2060 तक आते आते ग्लेशियर पिघलने की गति काफी तेज हो जाएगी। इन हालातों में दुनिया को कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यही नहीं इंसानी वजूद पर भी एक गहरा संकट मंडराएगा।
इसी सिलसिले में आज हम बात करेंगे क्या होगा जब अंटार्कटिका का सारा ग्लेशियर पिघल कर पानी में मेल्ट हो जाएगा? वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसी स्थिति में मानव सभ्यता के लिए एक बहुत बड़ा संकट उभरेगा। इससे करोडों लोगों की जानें जा सकती हैं। यही नहीं पूरे ग्लेशियर के मेल्ट होने पर वैश्विक अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से धराशायी हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर पूरी पृथ्वी का ग्लेशियर पिघल जाता है तो इससे तकरीबन 70 मीटर तक सी लेवल ऊपर उठ जाएगा। वहीं Massey university के एप्लाइड मैथमेटिक के प्रोफेसर रॉबर्ट मेकलेचलन का ये तक कहना है कि अंटार्कटिका के ग्लेशियर के पूरी तरह से मेल्ट होने पर पृथ्वी की ग्रेविटेशनल पावर शिफ्ट हो जाएगी। इससे कई जगहों पर भारी नुकसान देखने को मिलेगा।
पृथ्वी के सभी महाद्वीप आंशिक रूप से पानी के भीतर समा जाएंगे। लंदन, मुंबई, मियामी, सिडनी जैसे शहर पूरी तरह से महासागरों के अंदर आ जाएंगे। इससे करोड़ों की संख्या में लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पर माइग्रेट करना पड़ेगा। अर्थव्यवस्था और रहने लायक जगह पूरी तरह से तहस नहस हो जाएगी। करोड़ों लोग बेघर होंगे। उनके पास रहने और खाने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। ऐसी स्थिति में बड़े स्तर पर आपसी मारकाट की स्थिति भी पनप सकती है।
इन ग्लेशियर के भीतर बड़ी मात्रा में खतरनाक वायरस पिछले हजारों सालों से दफन हैं। बर्फ के पिघलने से वे कोरोना से भी ज्यादा भयंकर महामारी देश दुनिया में ला सकते हैं। भारी मात्रा में जैव-विविधता को हानि पहुंचेगी। कई सारी मरीन लाइफ पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी। इसके अलावा पृथ्वी पर रहने वाली कई प्राजितायां भी खत्म हो जाएंगी। पृथ्वी पर एक विनाशकारी स्थिति का उद्भव होगा। कई हाइपोथेसिस का ये तक कहना है कि ग्लेशियर पिघलने का प्रभाव पृथ्वी की घूर्णन गति पर भी पड़ेगा। इससे पृथ्वी के दिन का समय थोड़ा ज्यादा बढ़ जाएगा। पीने लायक 69 प्रतिशत पानी ग्लेशियर के भीतर जमा हुआ है। उसके पिघलने पर ये शुद्ध पानी भी साल्ट वाटर में मिलकर पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। ऐसे में अगर देखा जाए तो अभी स्थिति बदली नहीं है। अभी भी हमारे पास बहुत वक्त है। हमें प्रकृति और विकास के साथ संतुलन बनाना होगा। अन्यथा एक दिन ऐसा भी आ सकता है, जब स्थिति काबू से बाहर हो जाएगी और हमें विनाशकारी दौर से गुजरना पडेगा।