सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति पर केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से सवाल करते हुए कहा कि इतनी जल्दी क्यों थी। चुनाव आयुक्त के पद पर इतनी तेजी से नियुक्ति क्यों की गई। न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गोयल की नियुक्ति पर फाइल की जांच करने के बाद कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) डेटाबेस से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने में कानून मंत्री द्वारा अपनाए गए मानदंडों पर भी सवाल उठाया।
बेंच द्वारा पूछे गए सवालों पर अटॉर्नी जनरल ने तर्क दिया कि अदालत को नियुक्ति पर मिनी-ट्रायल नहीं करना चाहिए, हालांकि बेंच ने उनसे यह बताने के लिए कहा कि इतनी जल्दबाजी में नियुक्ति क्यों की गई। पीठ ने पूछा, उसी दिन प्रक्रिया शुरु हुई, उसी दिन क्लीयरेंस हुआ, उसी दिन नियुक्ति कर डाली। न्यायमूर्ति जोसेफ ने डीओपीटी के डेटाबेस से चार नामों को चुनने में कानून मंत्री द्वारा अपनाए गए मानदंडों पर विशेष रूप से सवाल किया। पीठ ने कहा कि 18 नवंबर को मंत्री ने नामों को चुना और फाइल भी उसी दिन पेश की गई, यहां तक कि प्रधानमंत्री ने भी उसी दिन नाम की सिफारिश की। हम कोई टकराव नहीं चाहते हैं।
कोर्ट ने कहा कि यह पद 15 मई से खाली था, और अब इस पर बिजली की रफ्तार से काम किया गया। न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि अदालत एक ‘यस मैन’ (हां में हां मिलाने वाला व्यक्ति) की नियुक्ति को लेकर चिंतित है और पूछा कि कानून मंत्री द्वारा आयु मानदंड के आधार पर सैकड़ों लोगों के डेटा से चार नामों को शॉर्टलिस्ट करने का क्या आधार है। सुपर फास्ट तरीके से गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि 24 घंटे से भी कम समय में प्रक्रिया पूरी और अधिसूचित नहीं की गई। शीर्ष अदालत, चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। अभी सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र से कहा कि वह गोयल की हालिया नियुक्ति से संबंधित फाइलों को देखना चाहता है।