आखिरकार 27 साल के लंबे इंतजार के बाद संसद और विधानसभाओं (Parliament and Assembly) में महिलाओं (women) को 33 फीसदी आरक्षण (Reservation) देने का रास्ता साफ होने की स्थिति में है। महिला वर्ग के अलग वोट बैंक के रूप में उभरने और मतदान के मामले में पुरुषों पर भारी पड़ने के कारण मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में कोटा विवाद के कारण ठंडे बस्ते में पड़े इस विधेयक को लाने का साहस दिखाया है। गौरतलब है कि इस विधेयक को मूर्त रूप देने में अब तक तीन प्रधानमंत्री और कई सरकारें नाकाम रही हैं।
गौरतलब है कि महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का बीड़ा साल 1996 में देवगौड़ा की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने उठाया था। विधेयक किसी नतीजे पर पहुंचता इससे पहले ही देवगौड़ा सरकार गिर गई। इसके बाद विधेयक में एससी-एसटी- ओबीसी की आरक्षण की मांग तेज होने के कारण गुजराल सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। फिर बाद में आई वाजपेयी सरकार भी कोटा-आरक्षण विवाद के कारण इस विधेयक को अमली जामा नहीं पहना पाई।
अचानक सक्रियता क्यों?
दरअसल, बीते एक दशक में महिलाओं के वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है। महिलाएं पुरुषों के इतर अपनी पसंद से न सिर्फ मतदान कर रही हैं, बल्कि इनका वोट प्रतिशत भी पुरुषों के मुकाबले बढ़ा है। मोदी सरकार के नौ साल के कार्यकाल में महिला केंद्रित योजनाओं के कारण भाजपा को इस वर्ग का साथ मिला है। ऐसे में मोदी सरकार आगामी लोकसभा चुनाव में इस समर्थन का दायरा बढ़ाना चाहती है।
विधेयक पारित कराने में मनमोहन सरकार भी हुई फेल
इस विधेयक को पारित कराने के लिए यूपीए-2 की सरकार में एक बार फिर से पहल हुई। तब साल 2010 में इसे राज्यसभा में पारित कराया गया, मगर लोकसभा में सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों के विरोध के कारण इसे पारित नहीं कराया जा सका। इसके बाद आई मोदी सरकार भी पहले कार्यकाल में अनुकूल माहौल का इंतजार करती रही, और दूसरे कार्यकाल के आखिर में सक्रिय हुई।
बीते लोकसभा चुनाव के बाद गंभीर हुई सरकार
पिछले लोकसभा चुनाव में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का मतदान प्रतिशत एक फीसदी से ज्यादा था। बीते चुनाव में कुल 67 फीसदी मतदान हुआ था। इसमें भाजपा को कांग्रेस के 20 फीसदी के मुकाबले महिलाओं के 35 फीसदी वोट मिले थे। साल 2014 के बाद कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में महिलाओं की मतदान में भागीदारी बढ़ने और इस वर्ग में भाजपा की पैठ बढ़ने की बात सामने आई। इसके बाद मोदी सरकार ने इस विधेयक पर आगे बढ़ने का मन बनाया।
उच्च सदन का गणित भी सरकार के पक्ष में
– इस विधेयक को पारित कराने को ले कर सरकार के सामने संख्या बल का संकट नहीं है। लोकसभा में सरकार को स्पष्ट बहुमत हासिल है, जबकि राज्यसभा में सरकार को बीआरएस, बीजेडी का समर्थन मिलना तय है।
– कांग्रेस भी आरक्षण के महिला विधेयक पारित कराने के पक्ष में रही है। ऐसे में उच्च सदन में भी यह विधेयक आराम से पारित हो सकता है।