सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति बालाजी के प्रसाद के लड्डू में मिलावटी घी के इस्तेमाल के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के दावे पर सोमवार को सवाल उठाया। कोर्ट ने प्रसाद के लड्ड़ू में मिलावट के सबूत मांगते हुए पूछा कि उन्होंने किस आधार पर कह दिया कि लड्डुओं में मिलावटी घी का इस्तेमाल हुआ है। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम²ष्टया अभी तक लड्डू में मिलावट का कोई ठोस सबूत नहीं है।
मुख्यमंत्री के मिलावट संबंधी मीडिया में दिये गए बयान पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है उन्हें बिना पुष्टि के सार्वजनिक तौर पर ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित करे। कहा कि कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए।
तीन अक्टूबर को होगी सुनवाई
मामले में तीन अक्टूबर को फिर सुनवाई होगी। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने 18 सितंबर को प्रेस में बयान दिया था कि पिछली सरकार जगन मोहन रेड्डी के कार्यकाल में तिरुपति के प्रसाद के लड्डुओं में पशु चर्बी युक्त मिलावटी घी का इस्तेमाल हुआ है। उन्होंने घी में मिलावट पाए जाने की जांच रिपोर्ट भी सार्वजनिक की थी।
मुख्यमंत्री के बयान के बाद से हिंदुओं की आस्था के केंद्र भगवान तिरुपति बाला जी के प्रसाद के लड्डुओं को लेकर तरह तरह के सवाल उठ रहे हैं। सुब्रमण्यम स्वामी सहित कुल पांच याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुईं हैं जिसमें कोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जांच मांगी गई है। हालांकि इस बीच मंदिर बोर्ड ने बयान जारी कर कहा था कि मिलावटी पाए गए घी का इस्तेमाल प्रसाद के लड्डुओं में नहीं हुआ है। सोमवार को न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने मामले पर सुनवाई की।
कोर्ट ने लड्डुओं में मिलावटी घी के इस्तेमाल के कोई ठोस सबूत के बगैर इस तरह के बयान दिये जाने पर कड़ा ऐतराज जताया। पीठ ने आंध्र प्रदेश सरकार की पैरोकारी कर रहे वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा और मुकुल रोहतगी से सवालों की झड़ी लगा दी। पूछा किस आधार पर कहा गया कि लड्डुओं में मिलावटी घी का इस्तेमाल हुआ है। इस बात का क्या सबूत है कि मिलावटी घी लड्डुओं में इस्तेमाल हुआ था जबकि मंदिर बोर्ड प्रशासन ने बयान जारी कर कहा है कि जो घी मिलावटी पाया गया उसका इस्तेमाल लड्डुओं में नहीं किया गया।
मामले की जांच के दिए आदेश
आपने मामले की जांच के आदेश दिये हैं, जांच हो रही तो फिर जांच पूरी होने से पहले आपको प्रेस में जाकर बयान देने की जरूरत क्या थी। कोर्ट ने मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब घी में मिलावट की रिपोर्ट जुलाई में आ गई थी और बयान 18 सितंबर को क्यों दिया गया। कोर्ट ने कहा कि मुख्यमंत्री ने मीडिया में बयान पहले दे दिया जबकि एफआइआर 25 सितंबर दर्ज हुई और जांच के लिए एसआइटी का गठन 26 सितंबर को बाद में हुआ। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से जब इस पर पूछा तो मेहता ने कहा कि यहां आस्था का सवाल है और अगर मिलावटी घी का इस्तेमाल हुआ है तो यह अस्वीकार्य है। इसकी जांच की जरूरत है।
जस्टिस गवई ने उनसे सहमति जताते हुए कहा कि इसकी जांच होनी चाहिए। लेकिन राज्य सरकार द्वारा गठित एसआइटी की जांच काफी है या फिर किसी स्वतंत्र एजेंसी से नये सिरे से जांच कराई जानी चाहिए इस पर सालिसिटर जनरल केंद्र सरकार का रुख अगली सुनवाई पर बताएंगे तभी कोर्ट इस पर विचार कर निर्णय करेगा। इससे पहले याचिकाकर्ताओं के वकीलों का कहना था कि एक ओर मुख्यमंत्री का लड्डुओं में मिलावटी घी के इस्तेमाल का बयान है और दूसरी ओर मंदिर बोर्ड का कहना है कि मिलावटी घी का इस्तेमाल नहीं हुआ है। यह महत्वपूर्ण मामला है और कोर्ट की निगरानी में स्वतंत्र निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।