तालिबान (Taliban) ने मंगलवार को अफगानिस्तान (Afghanistan) के छह प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा जमा लिया. कब्जे के बाद हजारों की संख्या स्थानीय लोग अपना घर छोड़कर भाग निकले. ऐसी स्थिति में तालिबान के खात्मे के लिए अफगानिस्तान की अशरफ गनी सरकार (Ashraf Ghani Government) भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) की मदद चाहती है. द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान सरकार चाहती है कि भारतीय वायुसेना अफगानिस्तान जाकर अफगान एयरफोर्स की मदद करे. गनी सरकार की आशंका है कि 31 अगस्त तक अमेरिकी फौजों के पूरी तरह अफगानिस्तान से निकलने के बाद तालिबान की हिंसा और बढ़ जाएगी.
बता दें कि पिछले कुछ दिनों में अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच हिंसक संघर्ष लगातार बढ़ता गया है. तालिबानी आतंकियों की नजर अब अफगानिस्तान के मजार ए शरीफ शहर पर है, जोकि अफगानिस्तान का सबसे बड़ा उत्तरी शहर है. मजार ए शरीफ पर तालिबान का कब्जा इलाके से अफगान सरकार के नियंत्रण के खात्मे का संकेत होगा. ये शहर परंपरागत तौर पर तालिबान विरोधी रहा है. अफगानिस्तान में सरकारी फौजों को कंधार और हेलमंद में इस्लामी चरमपंथियों का सामना करना पड़ रहा है. ये इलाका पश्तो बोलने वाले लोगों का है, जहां से तालिबान को मजबूती मिलती रही है. हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अतमर के बीच फोन पर भारतीय वायुसेना द्वारा काबुल में अफगान वायुसेना की मदद पर चर्चा हुई थी.
अमेरिका इस महीने के अंत तक अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को पूरी तरह निकाल लेगा और इसके साथ अफगानिस्तान में चल रहा उसका सबसे लंबा युद्ध खत्म हो जाएगा, लेकिन अमेरिका के काबुल से निकलने को एक तरीके से उसका युद्धभूमि छोड़कर भागना कहा जा रहा है. दूसरी ओर वॉशिंगटन के विशेष दूत जाल्मी खलीलजाद कतर में हैं और वे तालिबान को सीजफायर के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं. अमेरिकी गृह विभाग ने अफगानिस्तान की ताजा स्थिति पर जारी अपने बयान में कहा, “खलीलजाद तालिबान पर दबाव बनाएंगे कि वह हिंसा बंद करे. साथ ही अफगानिस्तान की बिगड़ती स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक साझा रणनीति बनाने में सहयोग देंगे.”
कतर, ब्रिटेन, चीन, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपियन यूनियन के उच्चायुक्त भी कतर में अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा करेंगे. बातचीत के नए दौर के बाद भी पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि अफगानिस्तान सरकार और उसके सुरक्षा बलों को ही तालिबान से लड़ना होगा. इस लड़ाई में मदद के तौर पर अमेरिका कुछ खास नहीं कर सकता. अफगानिस्तान में काफी लंबे समय से हिंसा का खेल चल रहा है और मई के बाद से अफगानिस्तान में हिंसा काफी बढ़ी है. अमेरिका की अगुवाई में नाटो सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने की समय सीमा अब अपने अंतिम दौर में है और इस महीने के अंत तक पूरी होगी. काफी बड़ी संख्या में अमेरिकी फौज पहले ही अफगानिस्तान से निकल चुकी है.