उच्च न्यायालय ने बीमा कंपनियों को कोविड-19 मरीजों के बिलों को 30 से 60 मिनट में पास करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि बीमा कंपनियां बिलों को मंजूरी देने के लिए 6-7 घंटे नहीं ले सकतीं क्योंकि इससे अस्पतालों से मरीजों को डिस्चार्ज में देरी होती है और बिस्तरों की जरूरत वाले लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि अदालत को किसी बीमा कंपनी या थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर (टीपीए) प्रोसेसिंग इंश्योरेंस क्लेम के बिल क्लियर करने के लिए 6-7 घंटे का समय लेने की जानकारी मिलती है तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने अपने आदेश में कहा कि बीमा कंपनियों या टीपीए को अस्पतालों से अनुरोध प्राप्त होने के बाद बिलों को मंजूरी देने में 30 से 60 मिनट से अधिक समय नहीं लगाना चाहिए। अदालत ने बीमा नियामक आईआरडीएआई को इस संबंध में निर्देश जारी करने का निर्देश दिया।
अदालत ने अस्पताल प्रबंधको को भी निर्देश दिया कि वे मरीज के डिस्चार्ज होने का इंतजार किए बिना ही नए मरीजों की भर्ती प्रक्रिया जारी रखे ताकि मरीज के बेड खाली करते ही बिना देरी से दूसरे मरीज को बेड मिल सके। इससे लंबे अरसे तक बेड को खाली नहीं रखा जा सकता। ऐसा ही आदेश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने अअलग मामले की सुनवाई के दौरान दिया।
खंडपीठ ने बीमा कंपनियों और टीपीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बिलों को मंजूरी देने में लगने वाले समय को कम किया जाए क्योंकि कोविड संक्रमणों में भारी वृद्धि के दौरान बिस्तरों की प्रतीक्षा कर रहे अस्पतालों के बाहर लोगों की लंबी कतारें लगी हुई है। खंडपीठ ने कहा कि अस्पतालों में मरीजों को डिस्चार्ज में देरी होने से जरूरतमंद मरीजों को भर्ती करने में देरी होती है और मरीज परेशान हो रहे है।
अदालत ने यह निर्देश उस तर्क पर दिया कि बीमा कंपनियां व टीपीए बिलों के भुगतान में देरी दे मंजूरी दे रही है। इस कारण अस्पताल प्रशासन मजबूरी में 8 से 10 घंटे तक मरीजों को बेड पर ही रखते है और जरुरतमंद मरीज बेड पाने से वंचित हो रहे है।राजधानी में ऑक्सीजन की कमी को लेकर ही प्रमुख रुप से सुनवाई हुई।