हर महीने दो चतुर्थी तिथि आती हैं। शुक्ल पक्ष में जो चतुर्थी तिथि आती है उसे विनायक चतुर्थी कहते हैं और दूसरी कृष्ण पक्ष में जो संकष्टी चतुर्थी के नाम से जानी जाती है। मगर सभी चतुर्थियों में माघ मास की संकष्टी चतुर्थी का काफी महत्व माना है। इसे सकट चौथ, माघी चौथ, संकटा चौथ, तिलकुट चौथ आदि नामों से जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी का मतलब है संकटों को हरने वाली चतुर्थी। इस दिन भगवान गणेशजी के साथ-साथ भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, नंदी और चंद्रदेव की पूजा की जाती है। महिलाएं व्रत रखकर अपनी संतान की दीर्घायु और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। नारद पुराण के मुताबिक इस दिन भगवान गणेश की आराधना से सुख-सौभाग्य में वृद्धि और विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि इस चतुर्थी में चन्द्रमा के दर्शन करने से गणेश जी के दर्शन का पुण्य फल मिलता है।
ऐसे करें गणेशजी की पूजा
इस दिन व्रत रखकर भगवान गजाननजी की आराधना की जाती है। उन्हें तिल के लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक इस दिन गणेश जी की पूजा भालचंद्र नाम से भी की जाती है। चतुर्थी को महिलाएं सुबह से चंद्रोदय काल तक नियमपूर्वक रहे, सांयकाल लकड़ी के पाटे पर लाल कपडा बिछाकर मिट्टी के गणेश एवं चौथ माता की तस्वीर स्थापित करें। रोली, मोली, अक्षत, फल, फूल आदि श्रद्धा पूर्वक अर्पित करें। गणेशजी और चौथ माता को प्रसन्न करने के लिए तिल और गुड़ से बने हुए तिलकुटे का नैवेद्य चढ़ाएं।
ऐसे दें चंद्रदेव को अर्घ्य
दिन में गणेशजी और चौथ माता की पूजा के बाद रात में चंद्र दर्शन के बाद इस व्रत का पारण किया जाता है। रात में चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। ताँबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें लाल चन्दन, कुश, पुष्प, अक्षत आदि डालकर चन्द्रमा को अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय ‘गगन रुपी समुद्र के माणिक्य चन्द्रमा ! दक्ष कन्या रोहिणी के प्रियतम !गणेश के प्रतिविम्ब !आप मेरा दिया हुआ यह अर्घ्य स्वीकार कीजिए’। यह बोलते हुए जल चढ़ाएं। चन्द्रमा को यह पापनाशक अर्घ्य देकर गणेश जी कथा का श्रवण करें। सकट चौथ का व्रत विशेष रुप से संतान की लम्बी उम्र और उनके सुखद भविष्य की कामना के लिए किया जाता है।
सकट चौथ व्रत की कथा
प्राचीन पौराणिक कथा के मुताबिक सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के राज में एक कुम्हार रहा करता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर उन्हें पकाने के लिए आवा लगाया, पर बहुत देर तक आवा पका नहीं। नुकसान होता देखकर कुम्हार एक तांत्रिक के पास गया और उसने तांत्रिक से सहायता मांगी। तांत्रिक ने उसे एक बालक की बली देने के लिए कहा। जिसके बाद कुम्हार ने एक छोटे बच्चे को आवा में डाल दिया, उस दिन संकष्टी चतुर्थी थी। उस बालक की मां ने अपनी संतान के प्राणों की रक्षा के लिए भगवान गणेश से सच्चे मन से प्रार्थना की। कुम्हार जब अपने बर्तनों को देखने गया तो उसे बर्तन पके हुए मिले और साथ ही बालक भी जिन्दा था। इस घटना के बाद कुम्हार बहुत डर गया और उसने राजा के सामने पूरी कथा बताई। जिसके बाद राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाली सकट चौथ की महिमा बताई। उसी समय से महिलाएं अपनी संतान और अपने परिवार की कुशलता और सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत रखने लगीं।