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जाति का खेल खेलने वाले हाथों से SC ने छीन लिया ब्राह्मण वाला झुनझुना, इस मामले में यूपी पुलिस को दी क्लीन चिट

कानून को लोगों की रक्षा करने वाला बताया जाता है, पर कई बार कुछ ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं कि लोग उसी कानून के रखवालों पर आरोप देने लगते हैं। बीते साल जब बिकरू कांड के मुख्य आरोपी विकास दुबे वाली घटना हुआ थी। उस समय भी ऐसा ही कुछ हुआ था। इस मुद्दे पर कई राजनीतिक दल 2022 विधानसभा चुनावों की अपनी अपनी सियासी बिसात बिछा रहे थे, इनमें बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी प्रमुख रुप से शामिल हैं। अब बिकरु कांड में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच आयोग ने विकास दुबे एनकाउंटर मामले में पुलिस को क्लीनचिट दे दी गयी है जिससे इन सभी दलों की रणनीति धरी की धरी रह गयी है।

कौन था विकास दुबे

बता दें कि, विकास दुबे एक जाना माना बदमाश था। उसने कानपुर जिले के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में दो जुलाई, 2020 की रात को आठ पुलिसकर्मियों की हत्या की थी। पुलिस ने ये आरोप लगाया है कि विकास दुबे और उसके सहयोगियों ने एक पुलिस उपाधीक्षक के साथ आठ पुलिसकर्मियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर के उनकी हत्या कर दी थी। इस घटना के एक हफ्ते के अंदर ही विकास दुबे को मध्यप्रदेश की पुलिस ने उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में गिरफ्तार किया था।

पुलिस ने दिया बयान

पुलिस ने जो बयान दिया है उसके अनुसार विकास दुबे को जब पुलिस उज्जैन से कानपुर ले कर रही थी तो विकास दुबे ने भागने की कोशिश की और उसी मुठभेड़ में वो मारा भी गया था। इस बात पर जहां सबने अपनी सहमति दिखाई थी तो वहीं कुछ दल ऐसे भी थे जिन्होंने इस मुठभेड़ को ही अवैध करार कर दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जांच आयोग का गठन किया था और अब उसकी रिपोर्ट भी सबके सामने पेश की गयी है।

नहीं मिला कोई सबूत

अब आयोग के हिसाब से इस मुठभेड़ के फर्जी होने का एक भी कोई सबूत नहीं मिला है। इस न्यायिक आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति डॉ. बी.एस. चौहान ने की । तो वहीं, हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश शशिकांत अग्रवाल और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता समिति के सदस्यों में मुख्य थे।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, जांच में ये बात सामने आई कि विकास दुबे और उसके गिरोह को कानपुर में स्थानीय पुलिस के साथ-साथ राजस्व और प्रशासनिक अधिकारियों का भी संरक्षण मिला हुआ था। अधिकारियों से ठोस संबंध होने के कारण ही विकास दुबे का नाम सर्कल के टॉप 10 अपराधियों की लिस्ट में शामिल नहीं था, जबकि विकास के खिलाफ 64 आपराधिक मामले चल रहे थे। इसके अलावा विकास के खिलाफ दर्ज मामलों की निष्पक्ष जांच कभी नहीं हुई।

आयोग ने जांच रिपोर्ट में कहा है कि पुलिस पक्ष और घटना दोनो का खंडन करने के लिए सबूत मांगी, जो कि हाथ नहीं लगा। यहां तक ​​कि विकास दुबे की पत्नी भी इस आयोग के सामने पेश नहीं हुईं।

सपा, बसपा ने किया विरोध

बता दें कि बहुजन समाज पार्टी मायावती के नेतृत्व में ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए विकास दुबे के एनकाउंटर को गलत साबित करने में पीछे नहीं हटे। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पार्टी के महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा को राज्य भर में ब्राह्मण सम्मेलन करने का निर्देश दिया था। इन सम्मेलनों में बीजेपी सरकार पर राज्य में ब्राह्मणों की हत्या का आरोप भी दिया जा रहा था। इस संदर्भ में सतीश चन्द्र मिश्रा ने हर जगह विकास दुबे का ही उदाहरण दिया और ये कहा कि राज्य में ब्राह्मण असुरक्षित है, यह सरकार ब्राह्मण विरोधी है।

केवल बसपा ही नहीं सपा भी मुस्लिम-यादव राजनीति छोड़ ब्राह्मणों की पिछलग्गू बनने की तैयारी में लगी है और विकास दुबे के एनकाउंटर को सरकार के आदेश और ब्राह्मण विरोध का एक मेन कारण भी बता रही थी। अही हाल ही में आम आदमी पार्टी भी अपनी चुनावी नीति में ब्राह्मण कार्ड का प्रयोग करने में जुटी थी और विकास दुबे को अहम मुद्दा बनाने से भी नहीं पीछे हट रही है। इतना ही नहीं इन दलों ने सरकार और जांच एजेंसियों की कार्यवाही पर सवाल उठाते हुए ये भी कहा कि इस मामले की जांच एक बार फिर से होनी चाहिए जबकि स्वयं विकास दुबे का परिवार भी उसके साथ जो हुआ उसको उसी की करनी का फल बता रहा है।

काफी छीनछपटी के बाद भी वोटों के लिए कानून और न्यायायिक जांच के बाद भी राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए सपा बसपा और आप जैसे दल उन पर हमेशा से ही प्रश्न करते रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया की निष्पक्षता और संदेह करने वाले दलों को विकास जैसे लोगो पर हो रही कार्रवाई से इतनी ही पीड़ा होती तो अभी तक विकास के परिवार से एक भी विरोधी आवाज़ उठाकर आखिर क्यों नहीं ला सके।

जांच आयोग ने जो रिपोर्ट दिखाई उसमें अब इन सभी के मंसूबों पर पानी फेरते हुए ब्राह्मण कार्ड खेलने के सपनो को बुन रहे पार्टी नेताओं की फ़ाइल को क्लोज़ कर दिया गया है। अब और खेलो जाति का खेल!