सीमा पार से घुसपैठ (Cross Border Infiltration) इस साल अब तक के सबसे निचले स्तर पर है. इसके बावजूद सुरक्षा एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती जिलों राजौरी और पुंछ के साथ लगी नियंत्रण रेखा (Line of Control-LAC) पर घुसपैठ की गतिविधि के बढ़ने के बारे में चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि इन जिलों में घुसपैठ की कोशिशों में बढ़ोतरी हुई है. मौके पर मौजूद एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ‘इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन इलाकों से घुसपैठ हो रही है. अगर सुरक्षा बल घुसपैठ की कई कोशिशों को नाकाम कर रहे हैं, तो कई दूसरे आतंकी (Terrorists) घुसपैठियों के गिरोहों के नहीं पकड़े जाने की आशंका भी ज्यादा है.’
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की साजिश की रणनीति साफ है. भले ही 20 से 30 फीसदी घुसपैठिए मुठभेड़ों में मारे जाएं, मगर वे और अधिक आतंकवादियों को भेजना जारी रखेंगे. उन्होंने कहा कि ‘यह हर मौसम के लिहाज से एक अच्छा रास्ता है, इसलिए यह उनके लिए भी फायदेमंद है और वे आसानी से घाटी पार कर सकते हैं.’ इस इलाके में पिछले दो साल में बढ़ती हताहतों की संख्या ने उन्हें योजना में फेरबदल करने के लिए मजबूर कर दिया है. सरकार के मुताबिक 21 अक्टूबर, 2021 से इन इलाकों में तीन अधिकारियों, पांच पैराट्रूपर्स और सात नागरिकों सहित कुल 26 सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं.
घेराबंदी और तलाशी अब रोजमर्रा का मामला
खुफिया एजेंसियों ने घुसपैठ की कोशिशों में वृद्धि के आधार पर सुरक्षा बलों को भी चेतावनी दी है. राजौरी के डांगरी गांव के सरपंच धीरज शर्मा ने बताया कि ‘घेराबंदी और तलाशी अभियान अब रोजमर्रा का मामला है. हम मुठभेड़ों और हताहतों के बारे में सुनते रहते हैं.’ 1990 के दशक के अंत में उग्रवाद का केंद्र होने के बाद बहरहाल 2000 के दशक के मध्य से यह इलाका कमोबेश शांत था. लेकिन हाल ही में दोनों जिलों में चिंताजनक हिंसा देखी गई है. एक वरिष्ठ स्तर के अधिकारी ने खुलासा किया कि ‘गलवान की झड़प के बाद इस इलाके में सेनाएं कम हो गई थीं, लेकिन अब फिर से उनको बढ़ाने पर काम किया जा रहा है.’
राजौरी-पुंछ बेल्ट को निशाना बना रहे आतंकी
उनके मुताबिक कश्मीर में झटका लगने के बाद आतंकवादी अब पीर पंजाल क्षेत्र में राजौरी-पुंछ बेल्ट को निशाना बना रहे हैं. उन्होंने कहा कि ‘अब खुफिया जानकारी पर आधारित अधिक आक्रामक घेराबंदी और तलाशी अभियानों को अंजाम दिया जा रहा है.’ उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने यह भी संकेत दिया कि दोनों सीमावर्ती जिलों में शांति बहाल करने के लिए सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां नई रणनीति अपना रही हैं. दिलचस्प बात यह है कि जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार मंच ने हाल में जारी की गई मानवाधिकार रिपोर्ट में भी इस पहलू पर रोशनी डाली गई है.
नए परिसीमन से भी बढ़ी समस्या
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दशकों की शांति के बाद जम्मू संभाग में पुंछ और राजौरी जिलों के सीमावर्ती इलाके, पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाकों से सीमा पार समर्थन के साथ आतंकवाद के ठिकाने के रूप में फिर से उभर रहे हैं. इस रिपोर्ट को 18 लोगों के एक समूह ने तैयार की थी, जिसमें पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई, पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव और जम्मू-कश्मीर के पूर्व वार्ताकार राधा कुमार शामिल थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में नए विधायी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन ने जम्मू में सांप्रदायिक विभाजन को तेज करने के साथ इन मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में अलगाव को बढ़ा दिया होगा. परिसीमन में जम्मू क्षेत्र के पुंछ और राजौरी को कश्मीर के अनंतनाग में शामिल किया गया है.