आज चैत्र नवरात्री के दिन उज्जैन के चौबीस खंभा माता मंदिर में आज सुबह महाअष्टमी की पूजा की गई है। उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह ने महालया और महामाया माता को मदिरा पिलाकर कोरोना वायरस से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। ऐसा माना जाता है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य महालया और महामाया माता की पूजा करते थे। तब से यह परंपरा ऐसे ही चली आ रही है। महाअष्टमी पर देवी को मदिरा का भोग लगाया जाता है। हमेशा यह परम्परा जिले का कलेक्टर ही निभाता है.
इस वर्ष भी जिला अधिकारी आशीष सिंह ने माता को मदिरा का भोग लगाया जा रहा है। इसके बाद 27 किमी तक शराब की धार चढ़ाकर अलग अलग भैरव मंदिरों में शराब का भोग भी लगाया गया। जिला अधिकारी भी कुछ दूर तक शराब की हंडी लेकर पैदल चलते हैं। उज्जैन में बहुत से प्राचीन देवी मंदिर हैं, जहां नवरात्रि में पूजा पाठ का बहुत ही महत्व है। इनमें से एक माना जाता है चौबीस खंबा माता मंदिर।
मान्यता है कि प्राचीनकाल में भगवान महाकालेश्वर के मन्दिर में प्रवेश करने और वहां से बाहर की तरफ जाने का मार्ग चौबीस खंबों से बनाया था। इस द्वार के दोनों किनारों पर देवी महामाया और देवी महालाया की प्रतिमाएं हैं।
सम्राट विक्रमादित्य ही इन देवियों की पूजा करते थे। तभी से अष्टमी पर यहां शासकीय पूजन किये जाने की परम्परा है। उज्जैन में प्रवेश का यह प्राचीन द्वार है। उज्जैन नगर रक्षा के लिये यहां चौबीस खम्भे लगे हुए थे, इसी कारण इसे चौबीस खंबा द्वार कहा जाता है। यहां महाअष्टमी पर शासकीय पूजा और इसके बाद पैदल नगर पूजा इसी वजह से की जाती है जिससे देवी मां नगर की रक्षा करें और महामारी से बचाएं।
करीब 27 किमी लम्बी इस महापूजा में 40 मंदिरों में मदिरा का भोग लगाया जाता है। यह परम्परा सुबह से शुरू होकर शाम को समाप्त होती है। यह यात्रा 24 खम्भा माता मंदिर से प्रारंभ होकर ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर पर शिखर ध्वज चढ़ाकर खत्म हो जाती है। इसमें खास बात यह होती है कि एक घड़े में मदिरा को भरकर उसमें नीचे छेद किया जाता है। उस छेद से शहर के पूरे 27 किमी लंबे यात्रा पथ पर मदिरा की धार बहायी जाती है। जो धार कहीं टूटती नहीं है।