आत्मविश्वास हो तो जिंदगी में आने वाली हर परेशानी का हल निकालना आसान होता है। इसकी असल बानगी मध्यप्रदेश के भिलाई में रहने वाले एक जवान ने पेश की। इनका नाम अभिषेक निर्मलकर है। अभिषेक ने एक हादसे में अपने दोनों पैर गवा दिए थे, लेकिन इस हादसे के बाद भी उनकी हिम्मत नहीं हारी और वह अपने कर्तव्य निर्वहन के साथ आज भी अपने परिवार का भरण पोषण अपने दम पर कर रहे है। उनके इस सफर में उनकी पत्नी और उनका परिवार उनके साथ खड़ा है।
एक रात में गवां दिए दोनों पैर
मालूम हो कि अभिषेक निर्मलकर एंटी टेररिस्ट स्वार्ड में नौकरी करते थे, लेकिन एक रात वह दानापुर एक्सप्रेस से घर के लिए निकले तो वह ट्रेन के गेट पर खड़े थे। इसी दौरान अचानक बोगी में धक्का-मुक्की शुरू हो गई और वह नीचे गिर गए। इस हादसे के बाद जब उनकी आंख खुली तो वह अस्पताल में थे और उन्हें उनके दोनों पैर महसूस नहीं हो रहे थे। इस दौरान उनका एक पैर नहीं था और दूसरा पैर का सहारा भी नहीं महसूस हो रहा था।
मानसिक तौर पर टूट गए अभिषेक
शारीरिक रूप से मिली यातना से ज्यादा मानसिक रूप में इसका दर्द महसूस हो रहा था। दर्द और बेचैनी इस कदर थी कि उसे बयां करना भी मुश्किल है। इसी दौरान डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उनका एक पैर काट दिया गया है और दूसरे पैर को भी अलग करना होगा। उसके अगले ही दिन उनके दूसरे पैर का भी ऑपरेशन किया गया और उसे भी काट दिया गया।
इस हादसे के बाद अभिषेक पूरी तरह से टूट गए। उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह अपना आगे का जीवन अब कैसे जिएंगे। वह तनाव में रहने लगे। इस दौरान उनकी पत्नी और परिवार वाले उनके साथ मजबूती से खड़े थे, लेकिन वह मानसिक तौर पर पूरी तरह से टूट चुके थे।
टूट गई थी पैरों पर खड़े होने की उम्मीद
वहीं दूसरी ओर पत्नी उनकी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार थी। इस दौरान बुजुर्ग पिता ने अपने बेटे का इस समय सहारा देने का फैसला किया, लेकिन यह सब बातें भी उन्हें मानसिक तौर पर मजबूती नहीं दे पाई। उनकी डेढ़ साल की बेटी और 7 साल का बेटा है। इसके साथ ही एटीएस के अधिकारियों ने भी उन्हें सहारा दिया।
उन्होंने बताया कि वह ड्यूटी पर जा सकते हैं। इसके बाद उन्होंने कृतिम पैरों पर खड़े होने का अभ्यास शुरू किया। 6 महीने में वह कृतिम पैरों से चलने में सफल हो गए। अभ्यास के दौरान वह कई बार गिरे और हर बार गिरकर खड़े हुए और दुबारा प्रयास शुरू किया।
अंत भला तो सब भला
ऐसे में उन्होंने अपनी जिंदगी में यह सबक सीखा कि अंत भला तो सब भला। धीरे-धीरे पैर जमाने लगे और दोस्तों के साथ वह बाइक भी चलाने का चलाने लगे। 20 अक्टूबर को उन्होंने वापस ड्यूटी जॉइन कर ली है और अब रोज की तरह बाइक पर 35 किलोमीटर का सफर तय करके ड्यूटी पर जाते हैं। बता दे इन दिनो अभिषेक मोपेड चलाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही वह अपनी जिंदगी के इस भयावह हादसे को भी बुलाना चाहते हैं।