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एशियाई देशों के बीच नेतृत्व को मजबूत करने की तैयारी में भारत, चीन को भी चुनौती

बिम्स्टेक (BIMSTEC)के जरिए भारत एशियाई देशों(india asian countries) के बीच अपने नेतृत्व को मजबूती (Strengthening the leadership)से रखने के लिए प्रयास(effort) कर रहा है। कभी दक्षेस के जरिये भी ऐसे प्रयास हुए थे लेकिन उसमें पाकिस्तान की नकारात्मक भूमिका के बाद भारत ने बिम्स्टेक मंच को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है। नई दिल्ली में बिम्स्टेक देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भी जयशंकर ने स्पष्ट रूप से इसके संकेत दिए। उन्होंने दो टूक कहा कि यह मंच हमारी पड़ोस प्रथम, एक्ट ईस्ट और सागर विजन को आगे बढ़ाएगा।

बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्स्टेक) हालांकि, ढाई दशक पुराना मंच है लेकिन मोदी सरकार में इस मंच को ज्यादा तरजीह दी गई है। इसमें भारत के अलावा छह अन्य देशों में बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका तथा थाइलैंड शामिल हैं। भारत इसका सबसे बड़ा सदस्य देश है। इसलिए इस मंच के जरिए न सिर्फ भारत बिम्स्टेक देशों के साथ अपने कारोबारी और राजनयिक रिश्तों को मजबूत कर रहा है, बल्कि इस मंच को अन्य एशियाई और आशियान देशों के साथ भी रिश्ते मजबूत करने का जरिया बना रहा है।

जानकारों की मानें तो भारत के लिए बिम्स्टेक के जरिए एशिया में अपनी ताकत और नेतृत्व को आगे बढ़ाना बेहतर कारगर साबित हो सकता है। वह इस मंच में सबसे बड़ा देश और विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था भी है। चूंकि दक्षेस में पाकिस्तान शामिल है, इसलिए वह मंच भारत के लिए सही नहीं है। दूसरे, इस मंच में शामिल ज्यादातर देश ऐसे हैं जिनकी सीमाएं भी भारत से लगती हैं। भारत की पड़ोस प्रथम, एक्ट ईस्ट और सागर विजन के क्रियान्वयन के लिए भी यह मंच उपयुक्त है।

बंगाल की खाड़ी के यह सभी छह देश इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि चीन इन देशों में दखल बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इस मंच के माध्यम से भारत को इन देशों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का भी मौका मिलेगा। दूसरे, भारत की सक्रियता से इन देशों पर यह भी दबाव होगा कि वह चीन की उन परियोजनाओं को अपने देश में मंजूरी प्रदान नहीं करें जो भारत को पसंद नहीं हैं।