टाटा मोटर्स ने 2 जून 2008 में फोर्ड से दो लग्जरी कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को खरीदा था. यह सौदा न केवल भारतीय वाहन निर्माता के लिए एक बड़ी सफलता थी, बल्कि यह रतन टाटा की व्यक्तिगत जीत भी थी. एक वक्त था जब फोर्ड के चेयरमैन ने रतन टाटा को अपमानित किया था. फोर्ड पर टाटा के “बदले” की कहानी को बिरला प्रिसिजन टेक्नोलॉजीज के चेयरमैन वेदांत बिड़ला ने ट्विटर पर सुनाया है. यहां आपको पूरी कहानी बताने जा रहे हैं.
बात 1998 की है, जब टाटा मोटर्स ने भारत की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका को लॉन्च किया था. टाटा इंडिका रतन टाटा का एक ड्रीम प्रोजेक्ट था. हालांकि, इस कार को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली. इसकी वजह कंपनी काफी घाटे में चली गई. कम बिक्री के कारण टाटा मोटर्स अपने कार कारोबार को एक साल के भीतर ही बेचना चाहती थी. इसके लिए टाटा ने 1999 में अमेरिका की बड़ी कार निर्माता कंपनी फोर्ड के साथ बात करने का फैसला किया.
रतन टाटा अपनी टीम के साथ बिल फोर्ड से मिलने के लिए अमेरिका गए. बिल फोर्ड उस समय फोर्ड के चेयरमैन थे. दोनों कंपनियों के बीच एक मीटिंग हुई. इस मीटिंग के दौरान बिल फोर्ड ने रतन टाटा को “अपमानित” किया. बिल ने रतन टाटा से कहा था कि उन्हें कार व्यवसाय में कभी शुरू नहीं करना चाहिए था. कहा जाता है कि बिल फोर्ड ने यहां तक कह दिया था कि तुम यात्री कार डिवीजन क्यों शुरू किया, तुम इसके बारे में बिल्कुल कुछ नहीं जानते. इसके बाद दोनों कंपनियों के बीच में कोई सौदा नहीं हुआ और रतन टाटा ने प्रोडक्शन यूनिट को नहीं बेचने का फैसला किया.
बाद में जो हुआ वह बिजनेस की दुनिया में बड़ी घटनाओं में से एक है. 9 साल बाद टाटा के लिए चीजें बदल गई थीं, जबकि फोर्ड 2008 की ‘मंदी’ के बाद दिवालिया होने के कगार पर थी. इसके बाद रतन टाटा ने फोर्ड पोर्टफोलियो के दो पॉपुलर ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर खरीदने की पेशकश की. जून 2008 में टाटा ने फोर्ड से जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 बिलियन डॉलर में खरीद दिया. कहा जाता है कि फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने टाटा को धन्यवाद देते हुए कहा था कि आप इन्हें खरीदकर हम पर एक बड़ा उपकार कर रहे हैं. इसके बाद टाटा ने जेएलआर की बिजनेस को प्रॉफिट में बदल दिया.