भारत के हर हिस्से में मां लक्ष्मी (Laxmi ) के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं। माता लक्ष्मी को धन और वैभव (wealth and fortune) की देवी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता लक्ष्मी के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करने से सभी आर्थिक संकट समाप्त हो जाते हैं। मां लक्ष्मी अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विशेषकर शुक्रवार को मां लक्ष्मी के मंदिर में जाना शुभ होता है। यहां आपको देश में मां लक्ष्मी के कुछ प्रसिद्ध तथा अनूठे मंदिरों के बारे में बता रहे हैं।
महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple), मुम्बई (Mumbai )
मुम्बई में समुद्र किनारे स्थित यह मंदिर अत्यंत आकर्षक और लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर के मुख्य द्वार पर सुंदर नक्काशी है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर का इतिहास अत्यंत रोचक है।
अंग्रेजों ने जब महालक्ष्मी क्षेत्र को वर्ली क्षेत्र से जोड़ने के लिए ब्रीच कैंडी मार्ग को बनाने की योजना बनाई। तब समुद्र की तूफानी लहरों के चलते पूरी योजना खटाई में पड़ती प्रतीत हुई। उस समय देवी लक्ष्मी एक ठेकेदार राम जी शिवा जी के स्वप्न में प्रकट हुई और उन्हें समुद्र तल से देवियों की तीन प्रतिमाएं निकाल कर मंदिर में स्थापित करने का आदेश दिया राम जी ने ऐसा ही किया और ब्रीच कैंडी मार्ग का निर्माण सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।
महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple), कोल्हापुर
यह मंदिर, जो अम्बाबाई मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, देवी महालक्ष्मी को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है और यह भारत के महाराष्ट्र के प्राचीन शहर कोल्हापुर के केंद्र में स्थित है। देवी पुराण के अनुसार यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। स्कंद पुराण की शंकर संहिता और अष्ट दशा शक्तिपीठ स्तोत्रम के अनुसार 18 महाशक्ति पीठों में से यह एक है। वहीं शाक्त पाठ में वर्णित मूल प्रकृति भी महालक्ष्मी देवी हैं। स्कंद पुराण के लक्ष्मी सहस्रनाम में भी देवी का वर्णन है.
अष्टलक्ष्मी मंदिर (Shri Ashtalakshmi Temple ), चेन्नई
अष्टलक्ष्मी मंदिर, चेन्नई में बंगाल की खाड़ी के भव्य तट पर बेसेंट समुद्र तट से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है। धन और ज्ञान की देवी अष्टलक्ष्मी यहां निवास करती हैं और मंदिर में आने वाले सभी लोगों को एक स्वच्छ आत्मा के साथ प्रार्थना करने का आशीर्वाद देती हैं। समुद्र की लहरों की निरंतर ध्वनि मंदिर परिसर में गूंजती है और तुरंत शांति की आभा पैदा करती है। इस जगह की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर के जीर्णोद्धार पर करीब 70 लाख रुपए खर्च किए गए थे और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हिन्दू समारोह, जीर्णोद्धार अष्ट बंधन महाकुंभ अभिषेकम के आयोजन पर 16 लाख रुपए से अधिक खर्च किए गए थे।
श्री पुरम स्वर्ण मंदिर (Sri Puram (Golden Temple), वैल्लोर (Vellore)
यह मंदिर भारत के तमिलनाडु (Tamil Nadu) में थिरुमलाइकोडी (मलाइकोडी) वैल्लोर में छोटी पहाड़ियो के तल पर श्री पुरम आध्यात्मिक पार्क में स्थित है। यह तिरुपति से 12 कि.मी., चेन्नई से 145 कि.मी., पुडुचेरी से 160 कि.मी. और बेंगलुरु से 200 कि.मी. दूर है।
मंदिर में मुख्यत: देवी श्री लक्ष्मी नारायणी या महालक्ष्मी (धन की देवी) की आराधना की जाती है। महालक्ष्मी का महाकुंभ 24 अगस्त, 2007 को आयोजित किया गया था। सभी धर्मों के भक्तों का इस मंदिर में स्वागत किया जाता है। अनुमानित: यह मंदिर 1500 किलोग्राम शुद्ध सोने से सुसज्जित है जो अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के गुंबद के 750 किलोग्राम के सोने के आकार का दोगुना है।
लक्ष्मी देवी मंदिर, (Laxmi Devi Temple, Hassan ) हसन
लक्ष्मी देवी मंदिर डोड्डागड्डावली में स्थित है जो हसन जिले का एक गांव है। यह हसन से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और बेलूर के रास्ते में है। लक्ष्मी देवी मंदिर कई सौ साल पूर्व होयसल शासन के दौरान बनाया गया था। राजा विष्णु वद्र्धन ने इस खूबसूरत मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर के चारों ओर नारियल के बागानों के साथ एक खूबसूरत झील है। आसपास की सुंदरता बस शानदार है। डोड्डागड्डावल्ली धीरे-धीरे पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। इसकी बदौलत ग्रामीण प्राकृतिक वातावरण इसे अपनी चपेट में ले रहा है।
कैला देवी मंदिर, (Kaila Devi Temple, Karauli) करौली
राजस्थान के करौली में कैला देवी मंदिर, हिन्दुओं का धार्मिक मंदिर है जिसे देवी दुर्गा के 9 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। करौली शहर से 23 की.मी. की दूरी पर कालीसिल नदी के तट पर कैला देवी मंदिर स्थित है। कैला देवी इस मंदिर में देवी के रूप में स्थित है। हर साल लाखों लोग दर्शन करने आते हैं। देवी कैला को मानव जाति की रक्षिका और उद्धारकर्ता के रूप में माना जाता है। यह मंदिर करौली साम्राज्य के रियासत जादौन राजपूत के शासकों द्वारा बनाया गया है।